राजस्थान के 33 जिलों में एडिज इजिप्टाई मच्छरों व डेंगू वायरस पर शोध कर चुके नोएडा स्थित अमेठी यूनिवर्सिटी के उप निदेशक व वायरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विनोद जोशी ने बताया कि उन्होंने सरकार को डेंगू वायरस को अण्डों में ही खत्म करने की योजना बनाकर दी थी। शोध में सामने आया कि एडिज मच्छर में डेंगू का वायरस उसकी लार ग्रंथियों से होते हुए अण्डाणु में चले जाते हैं जहां अण्डों में भी वायरस ट्रांसमिट हो जाता है। ऐसे में एक मच्छर संक्रमित होने के बाद वह सैकड़ों संक्रमित मच्छर पैदा करता है। मच्छरों में वायरस की पहचान इनडायरेक्ट फ्लुरोसेंट तकनीक से आसानी से हो जाती है।
मच्छर से अधिक अण्डे घातक डेंगू मादा एडिज इजिप्टाई मच्छर से फैलता है। इसके अण्डे उसके वयस्क से घातक होते हैं। यह मच्छर 400 मीटर तक ऊपर उड़ता है। उसके बाद साफ पानी का स्थान देखकर वहां अण्डे दे देता है। एक एडिज अपने जीवन में पांच बार अण्डे दे देता है। अण्डों में वायरस आ जाता है। पानी में अण्डे लार्वा में तब्दील हो जाते हैं। लार्वा कुछ समय में प्यूपा में और प्यूपा वयस्क में बदलकर फिर से लोगों को काटने के लिए तैयार हो जाता है। ये अण्डे किसी कंटेनर व मिट्टी में एक साल तक जीवित रह सकते हैं। डेंगू वायरस भी इनके अंदर एक साल तक बना रहता है। ऐसे में वयस्क मच्छरों की तुलना में इनके अण्डे ज्यादा खतरनाक है।
अण्डे कहां से आएंगे, पता नहीं चलेगा मच्छर वाटर बॉडीज के निकट कहीं पर भी अण्डे दे सकते हैं। केरल से आने वाले नारियल की जटा पर भी एडिज के अण्डे हो सकते हैं। डेंगू प्रभावित इलाके में जाने वाले व्यक्ति के कपड़ों पर भी मच्छर अण्डे दे सकता है जो धोने पर लार्वा में बदल जाते हैं। ऐसे में अण्डों को खत्म करना ही एक उपाय है।
अण्डों का रजिस्टर रखें चिकित्सा विभाग को एडिज इजिप्टाई मच्छर के अण्डों का एक रजिस्टर मेंटेन करना चाहिए। रजिस्टर में किस गांव से अण्डे लिए, किस घर से लिए, लोहे के या प्लास्टिक के कंटेनर से लिए, आस-पास डेंगू पीडि़तों की संख्या, अण्डे देने वाले स्थान पर मरीजों सघनता, स्थानीय लोगों के बाहर आने-जाने का रिकॉर्ड सहित तथ्यों का इंद्राज करने के बाद डेंगू को काफी नियंत्रण में किया जा सकता है। -डॉ. विनोद जोशी, उप निदेशक, अमेठी यूनिवर्सिटी नोएडा