झालरापाटन के प्रसिद्ध ईमली दरवाजे के नवग्रह शनि मन्दिर के बाहर एक प्राचीन मन्दिर में सरला माता की 5 फीट की मूर्ति स्थापित है। यह मन्दिर देवस्थान विभाग के अधीन है। सरला माता की यह मूर्ति वास्तव में दुर्गा की मूर्ति है परन्तु एक ही पाषाण शिला पर अंकित होने से यह आम लोगों की बोलचाल भाषा में सरला माता कही जाती है। मन्दिर के पुजारी ब्रजेश गौतम ने बताया कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां माता का सुन्दर शृंगार होता है। इसी के साथ नवरात्रि में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के पाठ के अलावा आरती होती है जिसमें स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में भाग लेते है। नवरात्रि के दौरान सप्तमी को 56 भोग, अष्टमी को विशेष महाआरती, नवमी को तांत्रिक हवन तथा दशमी को मन्दिर में विशाल भण्डारा होता है। अनेक परिवारों की मनोकामना यहां पूर्ण होने पर वे मन्दिर में देवी का शृंगार करवाकर भोजन प्रसादी का भी आयोजन करते हैं। साथ ही कीर्तन भजन भी करते हैं। आस-पास के ग्रामीणों में इस मन्दिर की बड़ी आस्था है।
यहां है विराजमान नगर में सरला माता बस स्टैंड महात्मा गांधी कॉलोनी में मन्दिर, नवग्रह शनि मन्दिर के बाहर मन्दिर, लंका गेट स्थल पर, महुवाबारी की गली में तथा नीमबारी गेट स्थल पर विराजमान है।
यह है इतिहास
- इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार उक्त मन्दिर में 5 फीट लम्बी व 3 फीट चौड़ी दुर्गा देवी की मूर्ति सरला माता के नाम से स्थापित है। यह मूर्ति 18वीं सदी में झालरापाटन के परकोटे के निर्माण के समय में स्थापित की गई थी। सरला माता रूपी दुर्गादेवी की यह मूर्ति चतुर्बाहू है तथा सिंह पर सवार है। देवी के हाथों में ज्वाला (आग), तलवार, डमरू तथा त्रिशूल का अंकन है। देवी मूर्ति के दोनों ओर 5-5 फीट की बटुक भैरव और काल भैरव की मूर्तियाँ स्थापित है। उनके हाथों में खड़ग, डमरू, गदा और चैन है तथा नीचे उनका वाहन श्वान है। इन मूर्तियों से पता चलता है कि यह मन्दिर राज्यकाल में शक्ति शैव तंत्र साधना, नगर रक्षार्थ तंत्र उपासना का केन्द्र रहा है। मन्दिर में दो रथिकाओं के मध्य ढाई फीट की 11वीं सदी की प्राचीन महिषासुर मर्दिनी की सुन्दर मूर्ति भी प्रतिष्ठित है जो चन्द्रभागा से लाकर यहां स्थापित की गई थी। इसमें देवी अपने हाथों में त्रिशूल को थामें महिष नामक असुर के शीश को छिन्न करती हुई अंकित है।