scriptपैदा होते ही राजस्थान का हर बच्चा 70 हजार से भी ज्यादा का कर्जदार | rajasthan economy Every child in Rajasthan is in debt of more than Rs 70 thousand as soon as he is born rajasthan bjp verses rajasthan congress | Patrika News
जयपुर

पैदा होते ही राजस्थान का हर बच्चा 70 हजार से भी ज्यादा का कर्जदार

Rajasthan News : राजस्थान पिछले तीन दशक में पूरी तरह कर्ज के पंजे में जकड़ चुका है। अब राज्य में हर बच्चा कर्जदार बनकर ही पैदा हो रहा है।

जयपुरJul 09, 2024 / 09:35 am

Supriya Rani

शैलेन्द्र अग्रवाल. राजस्थान पिछले तीन दशक में पूरी तरह कर्ज के पंजे में जकड़ चुका है। अब राज्य में हर बच्चा कर्जदार बनकर ही पैदा हो रहा है। यदि प्रति व्यक्ति कर्ज की गणना की जाए तो राज्य में पैदा होने वाले हर बच्चे पर 70 हजार 800 रुपए का कर्ज चढ़ जाता है।

राजस्थान के हालात इतने विकट हैं कि कर्ज की किश्त चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। भजनलाल सरकार ने भी लेखानुदान में पहले ही संकेत दे दिए कि इस साल भी 67 हजार 240 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज लिया जाएगा। यही औसत रहा तो आगामी 5 साल में कर्जभार करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए और बढ़ जाएगा।

आर्थिक उदारीकरण की बजाय उधार लेने में ज्यादा उदारता

दरअसल बीते 33 साल में राज्य सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की बजाय उधार लेने में ज्यादा उदारता बरती। इस अवधि में 5 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस ने सत्ता संभाली। दोनों दलों ने सत्तारूढ़ होते ही बढ़ते कर्ज के लिए पूर्ववर्ती सरकार को जिम्मेदार बताकर पल्ला झाड़ लिया। कांग्रेस हो या भाजपा की सरकार कर्ज कम करने का रास्ता किसी ने नहीं बनाया। नतीजतन 1990 के मुकाबले अब राज्य पर 90 गुणा कर्ज का भार है। राज्य पर 1989-90 में कर्जभार 6 हजार 127 करोड़ रुपए था और ब्याज 437 करोड़ रुपए चुकाया जा रहा था। कुल कर्जभार अब बढ़कर 5 लाख 79 हजार 781 करोड़ रुपए पार कर जाने का अनुमान है।

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ऐसा नहीं की राज्य सरकारों ने दीर्घकालीन विकास या अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कर्ज लिया। असल में वित्तीय हालात ऐसे हैं कि राज्य की प्रतिदिन की जरूरत पूरी करने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। बीती अशोक गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में 2 लाख 24 हजार 392 करोड़ रुपए का कर्जा उठाया। इसमें से मात्र 93 हजार 577 करोड़ रुपए स्थाई सम्पत्ति बनाने पर खर्च किए गए। कर्ज का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा दैनिक जरूरतों को पूरा करने में खर्च हो गया। अर्थात राज्य के दीर्घकालीन विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। यह गहलोत सरकार की ही कमजोरी नहीं रही। बीते 33 सालों के बजट दस्तावेजों के अध्ययन से पता चला कि वसुंधरा राजे सरकार में भी यही हाल रहा।

सत्ता आते ही बढ़ते कर्ज पर चिंता

वसुंधरा सरकार (14 जुलाई 2014)

राज्य पर कर्ज के भार का पहाड़ है। मार्च 2014 में कुल कर्जभार बढ़कर 1 लाख 29 हजार 910 करोड़ रुपए हो गया। अफसोस है कि इतना कर्ज लेकर भी उसे पूंजीगत निवेश में नहीं लगाया गया। वर्ष 2020 तक राज्य को समृद्ध बनाना है, इसके लिए आर्थिक विकास दर को 12 प्रतिशत तक ले जाने और प्रति व्यक्ति आय को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ाने का संकल्प लेते हैं। – वसुंधरा राजे, वित्तमंत्री

गहलोत सरकार (13 फरवरी 2019)

भाजपा सरकार ने चुनावी लाभ के लिए लुभावनी योजनाओं का क्रियान्वयन बिना समुचित बजट प्रावधान के किया। इसका वित्तीय स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा। वसुंधरा सरकार राज्य पर बड़ा कर्जभार छोड़कर गई। वर्ष 2018-19 में ऋण एवं दायित्व 138 प्रतिशत बढ़कर 3 लाख 9 हजार 385 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। राज्य की इस स्थिति में सुधार करना प्राथमिकता है। -अशोक गहलोत, वित्तमंत्री

भजनलाल सरकार (8 फरवरी 2024)

गहलोत सरकार की अदूरदर्शी सोच व गलत नीतियों के कारण विरासत में बहुत बड़ा कर्जभार मिला। राज्य पर कुल कर्जभार 5 लाख 79 हजार 781 करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है। प्रति व्यक्ति ऋण वर्ष 2017-18 में 36 हजार 880 रुपए था, जो अब 70 हजार 800 रुपए संभावित है। पूर्ववर्ती सरकार के समय 2 लाख 24 हजार 392 करोड़ रुपए ऋण लिया, जिसमें से 93 हजार 577 करोड़ रुपए पूंजीगत व्यय हुआ।-दिया कुमारी, वित्तमंत्री

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