गर्मियों में भी महकें चमेली के फूल
मन को मोह लेने वाली खुशबू से सराबोर चमेली की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। इसकी खेती खुली जमीन पर बांस के सहारे तार या रस्सी बांध कर करते हैं। इसी के साथ बड़े स्तर पर खेती करने वाले किसान ग्रीन हाउस एवं पॉली हाउस का सहारा ले रहे हैं। मार्च से जून तक चमेली भरपूर फूल देती है। पंजाब, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु के बाद अब हरियाणा और राजस्थान के किसानों का भी इसकी खेती की ओर रूझान बढ़ रहा है। वर्तमान में इसकी 75 से अधिक किस्में है।
हर तरह की मिट्टी में कामयाब
चमेली की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, बशर्ते मिट्टी में जैविक तत्व मौजूद हों। मिट्टी का पीएच 6.5 होना चाहिए। चमेली के बीज जून से नवम्बर तक लगाए जाते हैं। बीजों को लगाने से पहले मिट्टी की जुताई कर भुरभुरा करना होता है। गोबर की खाद में बढ़वार अच्छी होती है। प्रजनन विधि से उगाने के कारण बीजोपचार की आवश्यकता नहीं होती है। बाद में इन पौधों को कलम तरीके से गड्ढ़ों में लगाया जाता है। उष्णकटिबंधीय एवं हल्की जलवायु परिस्थिति वाले इलाकों में चमेली की खेती अच्छी होती है। इस खेती में 60 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर तक लागत आती है, लेकिन मुनाफा लागत से 10 गुना तक होता है। एक बार लगाया पौधा 10 साल तक फूल देता है। चमेली का पौधा 10-15 फीट ऊंचाई तक पहुंच जाता है। इसके सदाबहार पत्ते हरे रंग के, तना पतला और फूल सफेद रंग के होते हैं।
चमेली के फूलों के उपयोग
चमेली के फूल पुष्पमाला, सजावट और भगवान की पूजा में काम आते हैं। आयुर्वेदिक औषधि, फूल इत्र, क्रीम, तेल, शैम्पू, साबुन एवं डिटर्जेंट में खुशबू बढ़ाने के लिए इसका उपयोग होता है। इसके महत्व को देखते हुए कुछ कम्पनियां इसकी हर्बल चाय बनाने के प्रयास में जुटी हैं।
सावधानियां
चमेली के पौधे को धूप की आवश्यकता होती है। गर्मियों में पानी भी अधिक चाहिए। सर्दियों में केवल पौधे की जड़ों में नमी रखनी होती है। चमेली के पौधों पर कीट दिखाई देने पर १५-२० दिन के अंतराल पर गुनगुने पानी में नीम का तेल मिला कर छिड़काव करना चाहिए।
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