क्या दहशत पैदा करना अलग से अपराध है आयोग ने सवाल उठाया है कि क्या कुछ व्यक्तियों द्वारा संगठित रूप से अपराध करके दहशत पैदा करना अलग से दण्डनीय अपराध है, यह भी विचार होना चाहिए कि ऐसे अपराधियों को जो सजा मिल रही है वह क्या पर्याप्त है। इन हमलावरों ने मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसी को गोली नहीं मारी, न किसी को चोट पहुंचाई और न ही किसी की हत्या की, ऐसे में किन धाराओं में मामला दर्ज किया जाएगा। किसी को चोट नहीं पहुंचने के मामले में न्यायालय अधिकतम सजा तो दे सकता है, लेकिन कोई लूटपाट नहीं होने के कारण उनको तत्काल जमानत मिल सकती है, ऐसे में पुलिस प्रशासन में निराशा का वातावरण पैदा होगा और जनता का पुलिस-प्रशासन से भरोसा डगमगा सकता है। अपराधियों के जोधपुर में अलग-अलग स्थानों पर फायरिंग कर दहशत फैलाने के मामले में आयोग पहले ही प्रसंज्ञान ले चुका है और लोगों को जीने के लिए भयमुक्त वातावरण मुहैया कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
आम जनता का मनोबल बढ़ाए सरकार आयोग ने राज्य सरकार से यह बताने को कहा है कि क्या राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन व स्थानीय पुलिस क्षेत्र विशेष में आतंक फैलाने के अपराध की अलग से सजा दिलाने में सक्षम है, यदि इस मामले में विचार कर लिया गया है तो बताया जाए ताकि उससे आमजनता का मनोबल बढ़ेगा व आमजन भयमुक्त वातावरण में अपने मानव अधिकारों के साथ चैन से रह सकेगी।
आयोग का आदेश पुलिस महानिदेशक बहरोड़ मामले से संबंधित विशेष परिस्थितियों व हालात को लेकर पुलिस का पक्ष पेश करें, क्योंकि इस प्रकार की घटनाओं से पुलिस की छवि पर प्रश्न उठते हैं? पुलिस की छवि की रक्षा करना पुलिस का पहला कर्तव्य है। ऐसे में पुलिस महानिदेशक इस मामले पर गंभीरता से विचार करें। जहां तक आयोग के अपराधियों व बंदियों के प्रति संवेदनशील होने और पीड़ितों के हितों को नजरंदाज कर दिए जाने के आरोपों का सवाल है, तो ऐसे आरोपों को उसी परिस्थिति में बल मिलता है जब पुलिस द्वारा बंदियों के साथ कुछ अलग प्रकार का बर्ताव किया जाता है। राज्य सरकार की ओर से भी इस मामले में स्वतंत्र रूप से पक्ष रखा जाए। अब सुनवाई 24 अक्टूबर को होगी।