सालासर बालाजी:
सालसर बालाजी का भव्य मंदिर राजस्थान के चुरू जिले के सालासर में स्थित है। जन-जन की आस्था और विश्वास को समेटे सभी हनुमान भक्तों का यह परम पावन धाम है। इस मंदिर में श्री बालाजी की भव्य प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान है। इसके ऊपरी भाग में श्रीराम दरबार है तथा निचले भाग में श्रीराम के चरणों में दाढ़ी-मूंछ से सुशोभित हनुमानजी श्री बालाजी के रूप में विराजमान है। श्री बालाजी का ऐसा वयस्क रूप यहां के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलेगा। सालसर धाम लाखों – करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र है।
पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले राजस्थान के एक असोता गांव में खेती करते हुए किसान को हनुमान जी की मूर्ति प्राप्त हुई। किसान ने इस घटना के बारे में लोगों को बताया। कहते है कि जब वहां के जमींदार को भी उसी दिन एक सपना आया कि भगवान हनुमान जी उसे आदेश देते हैं कि उन्हें सालासर में स्थापित किया जाए तो उसी रात सालासर के एक निवासी मोहनदास को भी भगवान हनुमान जी ने सपने में दर्शन देकर आदेश दिया कि मुझे असोता से सालासर में ले जाकर स्थापित किया जाए।
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मेहंदीपुर बालाजी
राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की मान्यता पूरे भारत में फैली हुई है। आपको बता दें मेहंदीपुर में हनुमानजी के बचपन का रूप है। इस मंदिर से जुड़ी कई अनोखी बातें है। बालाजी की स्थापना की कई काहनी सामने आई है जिनमे से एक में ये भी कहा जाता है कि पहले मंदिर का क्षेत्र घना जंगल था जहां श्री महंत जी के पूर्वज बालाजी की पूजा करने लगे थे। श्री महंत जी के सपने में तीनों देवता आए और उन्हें एक आवाज सुनाई दी, जिसमें मंदिर बनवाने की बात कही थी। तब मेहंदीपुर बालाजी की स्थापना हुई। यहां देशभर से लोग भूत-प्रेत की बाधा से मुक्ति पाने के लिए बाला जी महाराज के चरणों में आते हैं।
खोले के हनुमानजी:
राजधानी जयपुर में खोले के हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर की अपनी एक अलग ही पहचान है। यहां देशी-विदेशी पर्यटक भी प्रकृति की मनोरम छटा को निहारने के लिए दूर-दूर से आते है। 60 के दशक में शहर की पूर्वी पहाड़ियों की गुफा में बहते बरसाती नाले और पहाडों के बीच निर्जन स्थान में जंगली जानवरों के डर से शहरवासी यहां का रूख भी नहीं कर पाते थे तब एक साहसी ब्राह्मण ने इस निर्जन स्थान का रूख किया और यहां पहाड़ पर लेटे हुए हनुमानजी की विशाल मूर्ति खोज निकाली। इस निर्जन जंगल में भगवान को देख ब्राह्मण ने यही पर मारूती नंदन श्री हनुमान जी की सेवा-पूजा करनी शुरू कर दी और प्राणान्त होने तक उन्होंने वह जगह नहीं छोड़ी। खोले के हनुमानजी के वे परमभक्त ब्राह्मण थे पंडित राधेलाल चौबे जी। चौबे जी के जीवनभर की अथक मेहनत का ही नतीजा है कि यह निर्जन स्थान आज सुरम्य दर्शनीय स्थल बन गया।
इस मंदिर की खास बात है कि तीन मंजिला इस भव्य मंदिर में भगवान हनुमान जी के अलावा ठाकुरजी, गणेशजी, ऋषि वाल्मीकि, गायत्री मां, श्रीराम दरबार के अलग अलग और भव्य मंदिर है। यहां श्रीराम दरबार में भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियां हैं। अन्नकूट के अवसर पर यहां लक्खी मेला लगता है।
सामोद वीर हनुमान मंदिर:
सामोद वीर हनुमानजी का मंदिर अपने अनूठेपन के लिए जाना जाता है। पर्वत शिखर पर स्थित हनुमानजी के दर्शन करने के लिए करीब 1100 सीढियां चढना होता है। अजीब बात यह है कि सीढियां की संख्या कितनी है यह आज तक कोई पूरी तरह ठीक से नहीं बता पाया है। हनुमानजी के भक्त उनके दर्शन करने और पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां दूर-दूर से आते है। यहां भक्तों के रुकने की व्यवस्था भी है।
सीतारामजी, वीर हनुमान ट्रस्ट सामोद द्वारा यह मंदिर बनाया गया था। हनुमान मंदिर निर्माण के पीछे की कहानी अद्भुत है। मान्यता है कि यहां पर स्थापित होने के लिए खुद हनुमानजी ने ही आकाशवाणी के माध्यम से अपनी इच्छा प्रकट की थी। भक्तों के मुताबिक लगभग 600 वर्ष पूर्व संत नग्नदास और उनके शिष्य लालदास सामोद पर्वत पर तपस्या करने आए। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान एक दिन संत नग्नदास ने आकाशवाणी सुनी— मैं यहां वीर हनुमान के रूप में प्रकट होऊंगा। उसी समय उन्हें पहाड़ी की चट्टान पर साक्षात हनुमान के दर्शन भी हुए। जिस चट्टान पर उन्हें हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हुए थे, उसे वे हनुमानजी की मूर्ति का आकार देने लगे। बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया।
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काले हनुमानजी:
जयपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां काले हनुमान जी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जब हनुमान जी की शिक्षा पूरी हो गई तो उन्होंने अपने गुरु सूर्यदेव से दक्षिणा मांगने की बात की। इस पर सूर्यदेव ने हनुमान जी से कहा कि उनका बेटा शनिदेव उनकी बात नहीं मानता है।अगर वो शनिदेव को उनके पास ले आएंगे तो वही उनका गुरु दक्षिणा हो जाएगा। गुरु की बात मानकर हनुमान जी शनिदेव के पास गए। लेकिन शनिदेव ने जैसे ही उन्हें देखा तो क्रोधित होकर हनुमान जी पर अपनी कुदृष्टि डाल दी, जिससे उनका रंग काला पड़ गया। लेकिन फिर भी हनुमान जी शनिदेव को सूर्यदेव के पास ले आए। ऐसे में हनुमान जी की गुरुभक्ति से प्रभावित होकर शनिदेव ने उन्हें वचन दिया कि शनिवार के दिन जो कोई भी हनुमान जी की उपासना करेगा उसपर उनकी वक्रदृष्टि का कोई असर नहीं होगा। इसके बाद से ही काले हनुमान जी की पूजा होने लगी।