जबलपुर। सिंहस्थ महाकुंभ में हजारों की संख्या में अघोरी और नागा साधु दिखाई दे रहे हैं, लेकिन बाकी दिनों में इन्हें खोजना या इन तक पहुंचना आम जनमानस के बस की बात नहीं होती है। क्योंकि इनके जीवन का एक ही उद्देश्य होता है साधना, जिसमें ये इतने तल्लीन हो जाते हैं कि किसी को नजर ही नहीं आते।
अघोरियों द्वारा श्मशान में तीन प्रकार की साधनाएं की जाती हैं जिनमें श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना शामिल हैं। प्रमुख रूप से इन साधनाओं को अघोरी कामाख्या शक्तिपीठ, तारापीठ, बगलामुखी शक्तिपीठ सहित भैरव मठों में करते हैं। इन साधनाओं को करने के अलावा संसार में इनका कोई और लक्ष्य नहीं होता और साधना के बाद या अन्य समय में ये अघोरी हिमालय के जंगलों में निवास करते हैं। इन्हें साधारण तौर पर देखा भी नहीं जा सकता ना ही ये अघोरी तांत्रिक समाज में शामिल होते हैं।
क्या है शव साधना
अघोरियों द्वारा की जाने वाली शव साधना यानि श्मशान में स्वयं के
शरीर की अनुभूति को शव के समान नि:सत्व करके, अपने उद्देश्य
की मानसिक रूप से साधना करना है। अघोरियों द्वारा की जाने वाली
श्मशान साधना में श्मशान को जगाकर की जाती है।
ये शव अधिक उपर्युक्त
शव साधना के लिए किसी शव का होना आवश्यक है। अघोरी यदि पुरुष है, तो उसे साधना के लिए स्त्री के शव की आवश्यकता होगी और यदि अघोरी स्त्री है तो शव साधना के लिए पुरुष का शव आवश्यक है। परंतु शव का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि शव किस श्रेणी का है। किसी चांडाल, दुर्घटना में मरे हुए व्यक्ति या फिर अकारण मरने वाले युवा का शव, शव साधना के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।
समयकाल महत्वपूर्ण
शव साधना विशेष समयकाल में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
कृष्ण पक्ष की अमावस्या या शुक्ल पक्ष अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी
वाले दिन यह बेहद महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ यदि मंगलवार का
संयोग हो तो यह सोने पर सुहागे के समान है।
भूत-प्रेतों से सुरक्षित
शव साधना आसान नहीं है। इस साधना को करते समय श्मशान में कई दृश्य और अदृश्य बाधाएं आती हैं, जिन्हें हटाना एक सिद्ध और जानकार अघोरी अच्छी तरह से जानता है। साधना के पूर्व ही अघोरी को संबंधित स्थान को भूत-प्रेतों और अन्य बाधाओं से सुरक्षित रखना होता है, ताकि वे साधना के बीच में विघ्न पैदा न कर सके।
तैयार किया जाता है शव
जिस शव की साधना की जानी है उसे अघोरी द्वारा स्नान करवाकर, उस पर सुगंधित तेलों का छिड़काव किया जाता है। लाल चंदन का लेप कर शव के उदर पर यंत्र बनाया जाता है। इसके बाद शव के उदर पर बैठकर यह साधना की जाती है। साधना में लगातार मंत्रोच्चार और क्रिया जारी रहती है। शव साधना में विशेष बात यह है कि यह साधना उपयोग किए जा रहे शव की मर्जी से होना आवश्यक है, अन्यथा यह मुसीबत भी बन सकती है।
बोलने लगता है मुर्दा
इस साधना के पूणज़् होते-होते मुर्दा या शव भी बोलने लगता है। आधी रात बीतेते-बीतते शव की आंखें भी विचलित होने लगती है और उसके शरीर में कई परिवर्तन एक साथ देखे जा सकते हैं। लेकिन इन भयावह और खतरनाक दृश्यों को देखते हुए भी साधक का मन लक्ष्य से नहीं हटता। साधना पूर्ण होने पर साधक वह सिद्धी प्राप्त कर लेता है जिसके लिए वह शव साधना कर रहा था।
– लाली कोष्टा
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