करीब चार सदी पुरानाहै पंडों का इतिहास
नर्मदा तीर्थ पुरोहित संघ अध्यक्ष एवं नर्मदा महाआरती संस्थापक ओंकार दुबे ने बताया कि नर्मदा तट पर पूजन, विधान, कर्मकांड कराने वाले पंडों का करीब चार सदी पुराना इतिहास है। देश प्रदेश के विभिन्न गांवों व शहरों से आए तीर्थ पुरोहितों ने जंगलों के बीच बहती नर्मदा के तट पर अपना जीवन समर्पित कर दिया। लोगों को न केवल नर्मदा के महत्व बल्कि उसकी आस्था और भक्ति से लोगों को अवगत कराने का काम भी किया। हर पुरोहित का अपना एक विशेष निशान है जो सदियों से उनकी पहचान है।
खारीघाट में दो सौ साल से पुराना रिकॉर्ड आज भी है मौजूद
ग्वारीघाट के खारीघाट में पूरे महाकोशल, बुंदेलखंड से लोग अपने मृत परिजनों की अस्थियां विसर्जन करने करने पहुंचते हैं। तीर्थ पुरोहित सुनील दुबे ने बताया उनके परिवार की आठ- नौ पीढिय़ां खारीघाट में खारी विसर्जन, तर्पण का काम करते हुए चली आ रही हैं। करीब दो साल पहले हमारे पूर्वजों ने यहां आने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखना शुरू किया था। आज हमारे पास दो सदी से ज्यादा का रिकॉर्ड रखा हुआ है। जिसमें लाखों की संख्या में नाम पते लिखे रखे हैं। पितरों में दूर दराज से लोग आकर अपने पूर्वजों, कुल, कुटुम्बी और परिजनों की जानकारी ले रहे हैं, ताकि उनका पिंडदान किया जा सके। यहां उनकी कई पीढिय़ों का रिकॉर्ड हैं।
पिंडदान करने वालों का 190 साल का रिकॉर्ड
तीर्थ पुरोहित अभिषेक मिश्रा ने बताया कि उनके नाना, परनाना करीब चार पीढिय़ों से तीर्थ पुरोहित का काम कर रहे हैं। हमारे पास करीब 180 से 190 साल पुराना रिकॉर्ड रखा है। पितृ पक्ष में बहुत से लोग अपने ज्ञात अज्ञात पितरों की जानकारी लेने पहुंच रहे हैं। जिनके पूर्वजों की तिथियां या तारीख ज्ञात नहीं हैं वे भी रिकॉर्ड निकलवाकर उनका तर्पण, श्राद्ध आदि निमित्त कर मोक्ष की कामना कर रहे हैं। वैसे तो पूरे साल लोग अपने पितरों की जानकारी लेने आते रहते हैं, लेकिन पितृ पक्ष के दौरान ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा होती है।