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संतों का राजनीति में प्रवेश का द्वार रहा है जबलपुर, तीन सांसद भी बने

संतों का राजनीति में प्रवेश का द्वार रहा है जबलपुर, तीन सांसद भी बने

जबलपुरApr 13, 2024 / 01:06 pm

Lalit kostha

swaroopanand saraswati

swaroopanand saraswati

जबलपुर. संस्कारधानी धर्म अध्यात्म के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हस्तियों का गढ़ रहा है लेकिन आज की पीढ़ी को यह जानकर हैरानी होगी कि जबलपुर संतों का राजनीति में प्रवेश का द्वार रहा है। दरअसल, देश के पहले लोकसभा चुनाव में 1952 में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (उस वक्त स्वामी) रामराज्य परिषद के रार्ष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे। उन्हें देश भर में जबलपुर के संत के रुप में ही पहचाना जाता रहा।

 

दुग्ध व्यापारी थे चिरऊ

नेहरू के खिलाफ 1952 में फूलपुर जाकर ताल ठोकने वाले चिरऊ महाराज पाटन के एक गांव के रहने वाले थे। वे उरमलिया परिवार से थे और प्रतिदिन पाटन से दूध लेकर शहर के बस स्टैंड पर बेचने आते थे। स्वामी स्वरूपानंद नेहरू के खिलाफ उम्मीदवार की खोज कर रहे थे। उन्होंने पंडित मथुराप्रसाद शास्त्री को चुनाव लड़ने के लिए किसी की खोज करने को कहा था। शास्त्री ने चिरऊ महाराज को उनकी मंशा से अवगत कराया।

तीन सांसद भी जीते

स्वामी स्वरूपानंद के नेतृत्व में लड़े गए देश के पहले आम चुनाव में राजराज्य परिषद ने कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों को कड़ी टक्कर दी। पार्टी के तीन प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि जबलपुर के चिरऊ महाराज फूलपुर में प्रधानमंत्री नेहरू को खासी टक्कर नहीं दे सके लेकिन उन्होंने देश-विदेश में जमकर सुर्खियां बटोरीं।

 

नेहरू को दी चुनौती

आजादी के बाद 1952 में पहले आम चुनाव हुए। रामराज्य परिषद का संगठन तब तक विस्तार ले चुका था। इस चुनाव में उसने कांग्रेस को चुनौती दी। स्वामी स्वरूपानंद ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ भी उम्मीदवार उतारने की ठानी। उस समय नेहरू फूलपुर से पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। स्वामी स्वरूपानंद ने जबलपुर के ही चिरऊ महाराज को रामराज्य परिषद के प्रत्याशी के रूप में फूलपुर से नामांकन पत्र भरवाया।

गुरुभाई करपात्री महाराज ने बनाया था अध्यक्ष

करपात्री महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक दल का गठन किया था। रामनवमी के दिन बनाए गए इस दल का नाम रामराज्य परिषद रखा गया और करपात्री महाराज ने गुरुभाई स्वरूपानंद सरस्वती को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। उस समय देश में कांग्रेस का ही प्रभुत्व था लेकिन संतों के मार्गदर्शन और स्वामी स्वरूपानंद के नेतृत्व में रामराज्य परिषद तेजी से लोकप्रिय हुआ। इसका प्रभुत्व ऐसा बढ़ा कि यह कांग्रेस को चुनौती देने वाले अहम दलों में गिना जाने लगा।

 

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