2004 से 2014 तक दो बार रहे थे प्रधानमंत्री
डॉ. सिंह साल 2004 से 2014 तक दो बार प्रधानमंत्री रहे थे। उनकी गिनती देश के बड़े अर्थशास्त्रियों में होती है। वह 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता भी रहे। हालांकि, साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत के बाद उन्होंने देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उन्होंने यूपीए-1 और 2 में प्रधानमंत्री का पद संभाला था। मनमोहन पहली बार 22 मई 2004 और दूसरी बार 22 मई 2009 को प्रधानमंत्री के पद की शपथ ली थी। वह 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के रूप में भारत के आर्थिक उदारीकरण के वास्तुकार (आर्किटेक्ट) थे।देश को आर्थिक संकट से निकाला
वित्त मंत्री के रूप में सिंह की भूमिका को देश के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। भुगतान संतुलन के मुद्दे और घटते विदेशी भंडार के साथ एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना करते हुए, उन्होंने परिवर्तनकारी सुधार पेश किए, जिससे अर्थव्यवस्था उदार हुई, निजीकरण को बढ़ावा मिला और भारत को वैश्विक बाजारों में शामिल किया गया। इन उपायों ने न केवल संकट को टाला बल्कि भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की राह पर भी खड़ा किया।इन फैसलों के लिए याद आएंगे मनमोहन
1. आर्थिक सुधार : मुड़कर नहीं देखा
मनमोहन सिंह देश में आर्थिक सुधारों के पुरोधा रहे। 1991 में देश के वित्त मंत्री का पद संभाला तो आर्थिक क्रांति ला दी। उस समय देश का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 के इर्द गिर्द था। वे महज एक वर्ष उसे 5.9 फीसदी के स्तर ले आए। डॉक्टर सिंह लागू किए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के बाद डूबती हुई अर्थव्यवस्था ने वह मुकाम हासिल कर लिया कि उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। 1991 से 1996 के बीच उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों की आज भी दुनिया भर में प्रशंसा की जाती है।Manmohan Singh Death: बुझ गई आर्थिक सुधारों की मशाल, सात दिन का राजकीय शोक, सभी सरकारी कार्यक्रम रद्द
2. नरेगा: 100 दिन रोजगार की गारंटी
बेरोजगारी से जूझते देश में रोजगार गारंटी योजना की सफलता का श्रेय मनमोहन सिंह को जाता है। उन्होंने साल में 100 दिन का रोजगार और न्यूनतम दैनिक मजदूरी 100 रुपए तय की। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) कहा जाता था। इस योजना की खास बात है कि इसमें कोई भी व्यवस्क आवेदन कर सकता है।3. पहचान : आधार कार्ड योजना
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का गठन सन 2009 में मनमोहन सिंह के समय ही गठित किया गया, जिसके तहत सरकार की इस बहुउद्देशीय योजना को बनाया गया। देश के हर व्यक्ति को पहचान देने और प्राथमिक तौर पर प्रभावशाली जनहित सेवाएं उस तक पहुंचाने के लिए इसे शुरू किया था। आज पैन नंबर को इससे लिंक करना, आपके मोबाइल नंबर को लिंक करना, बैंक खातों से भी आधार को जोड़ा जाना बेहद जरूरी हो चुका है।Manmohan Singh: सरकारी नौकरी करने वाले मनमोहन सिंह कैसे बन गए देश के प्रधानमंत्री, जानें उनका सफर
4. माइलस्टोन: भारत-अमरीका न्यूक्लियर डील
साल 2002 में यूपीए की गठबंधन सरकार के तमाम दबावों के बीच भारत ने इंडो यूएस न्यूक्लियर डील पर वार्ता की और 2005 में इस डील को अंतिम रूप दिया। उसके बाद भारत न्यूक्लियर हथियारों के मामले में एक शक्तिशाली देश बनकर उभरा। इस डील के तहत यह सहमति बनी थी कि भारत अपनी इकोनॉमी की बेहतरी के लिए सिविलियन न्यूक्लियर एनर्जी पर काम करता रहेगा।5. क्रांतिकारी कदम: शिक्षा और सूचना का अधिकार सौंपा
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार अस्तित्व में आया। यह दोनों फैसले क्रांतिकारी साबित हुए। आरटीआइ के तहत कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी जानकारी ले सकता है। वहीं, आरटीई के तहत 6 से 14 साल के बच्चे को शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया।—लाइसेंस परमिट राज का अंत हुआ।
—बंद अर्थव्यवस्था खुली।
—निजी कंपनियां आईं और विदेशी कंपनियां भी प्रवेश किया।
—आयात शुल्क में कमी आई।
—करोड़ों नई नौकरियां आईं।
—करोड़ों लोग ग़रीबी रेखा से पहली बार ऊपर उठे।
—प्राइवेट टीवी चैनलों की शुरुआत हुई।