नर्मदा तट लम्हेटाघाट का पुराणों में मिलता है उल्लेख, कहा जाता है श्राद्ध की जननी
शास्त्रों में उल्लेखित है इंद्र गया कुंड
इतिहासकार डॉ. आनंद सिंह राणा के अनुसार देवराज इंद्र ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए लम्हेटा घाट के गयाजी कुंड में पितरों का तर्पण किया था। प्रमाण के तौर पर यहां मौजूद हाथी के पद चिह्नों वाले गड्ढे ऐरावत हाथी के कहे जाते हैं। पुराणों के अनुसार राजा मनु ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया था। पौराणिक महत्ता के अनुसार नर्मदा को श्राद्ध की जाननी कहा जाता है।
पितरों की मुक्ति के लिए नर्मदा बनी माध्यम
स्कंद पुराण के रेवाखंड के अनुसार श्राद्ध , पितृमोक्ष क्या है, क्यों करना चाहिए इस बार विस्तार से बताया गया है। प्राचीनकाल में ऋषि, मुनि, देवता और दानवों को भी श्राद्ध का पता नहीं था। जिससे उनके पितरों की आत्माएं पृथ्वी लोक में भटकती रहती थीं। सतयुग के आदिकल्प के प्रारंभ में जब मां नर्मदा पृथ्वी पर प्रकट हुईं, तब स्वयं पितरों द्वारा ही श्राद्ध किया गया और उन्हें मुक्ति मिली। श्राद्ध कन्या के सूर्य राशि में भ्रमण के दौरान ही आश्विन कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध अर्थात महालय से अमावस्या के तक किया जाता है।