अगर ट्रेन निर्धारित स्पीड से 9 किमी प्रतिघंटा से ज्यादा है, तो ऑटोमैटिक ब्रेक भी लगाएगी। देश के महत्वपूर्ण स्टेशनों में से एक
इटारसी से चलने वाली ट्रेनों में भी यह सिस्टम लगाए जाएंगे। इससे पहले इटारसी के बीटीसी केंद्र में इटारसी सहित देशभर के रेल डिवीजनों से आ रहे रेलकर्मियों को इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है।
जिससे रेलकर्मियों को इसकी ऑपरेटिंग में किसी तरह की परेशानी नहीं आए। कवच सिस्टम 4.0 पर इंटरलॉकिंग लगाई गई है। जिससे अगले सिग्नल रेडियो वेव्स के जरिए सीधे इंजन तक पहुंचेगी। इससे पायलट सिग्नल को तेज रफ्तार होने पर भी आसानी से पढ़ लेगा। पायलट को लाइन पर लगे सिग्नल के भरोसे नहीं रहना होगा। इटारसी के लोको फोरमेन मनीष सक्सेना ने बताया कि इटारसी में ट्रेन ड्राइवरों की कवच सिस्टम को लेकर ट्रेनिंग चल रही है।
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-लोको पायलट द्वारा ब्रेक लगाने में विफल रहने पर स्वचालित ब्रेक लगाना। ड्राइवर कैब में लाइन-साइड सिग्नल प्रदर्शित करता है।
-मूवमेंट अथॉरिटी को रेडियो आधारित निरंतर अपडेट। समपार फाटक पर ऑटोमेटिक सीटी बजाना। एक लोको से दूसरे लोको तक सीधे संचार द्वारा टकराव से बचाव। -किसी दुर्घटना की स्थिति में मैसेज भेजना।
10 हजार से ज्यादा ट्रेनों में लगेगा कवच
रेल मंत्रालय ने दस हजार इंजनों पर कवच 4.0 लगाने को मंजूरी दी है। कवच को भारतीय रेलवे की विविधता रेगिस्तान से पहाड़ों तक, जंगलों से तटों तक, शहरों से गांवों तक को डिजाइन में शामिल किया गया है। कवच की तैनाती के लिए सबसे पहले उच्च घनत्व वाले दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रूट चुने गए। इसके बाद दिल्ली- चेन्नई और मुंबई-चेन्नई खंड और अन्य खंड के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई हैं। खास बात यह भी है कि इटारसी रेलवे स्टेशन सेंटर में होने की वजह से यह सभी कवच आधारित ट्रेनें इस खंड से भी होकर आवाजाही करेंगी।
ऐसे काम करेगा कवच
कवच सिग्नलिंग सिस्टम से सूचना प्राप्त करके इंजन को गाइड करता है। ट्रेन की लोकेशन और दिशा निर्धारित करने के लिए 1 किमी और हर सिग्नल पर लगाए जाते हैं। लोको और स्टेशन के बीच सूचना का आदान-प्रदान करता है।