सांचौर जिले के मालवाड़ा निवासी शैतानाराम पंवार ने कहा, मार्गशीर्ष बदि नवमी संवत 1593 के दिन गुरु जाम्भोजी महानिर्वाण को प्राप्त हुए थे। गुरु जंभेश्वर का जन्म 1451 ईस्वी यानी विक्रम संवत 1508 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर ग्राम में हुआ। जांभोजी के पिता का नाम लोहट पंवार व माता का नाम हंसादेवी था। इनके पिता पंवार गोत्रिय राजपूत थे। इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था। इनकी माता हंसादेवी ने उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना। 34 वर्ष की उम्र में सम्पत्ति अकाल ग्रसित लोगों की सहायता में लगे। गुरु जांभोजी का मूल उपदेश स्थल समराथल है। जांभोजी ने विश्नोई समाज के लोगों के लिए 29 नियम की आचार संहिता बनाई। इसी आधार पर कई इतिहासकारों ने बीस और नौ नियमों को मानने वाले को विश्नोई कहा है।
बाड़मेर जिले के रामजी का गोल निवासी नैनाराम भाम्भू ने कहा, जाम्भोजी ने 1485 में समराथल (बीकानेर) में विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। गुरु महाराज ने पुल्होजी पंवार को दीक्षित कर सर्वप्रथम विश्नोई बनाया। गुरु जम्भेश्वर ने अपने जीवन काल में अनेक शब्द कहे किंतु वर्तमान में 120 शब्द ही उपलब्ध है जिन्हें जंभ वाणी या शब्दवाणी के नाम से जाना जाता है। संत जाम्भोजी ने आडम्बरों का विरोध किया। गुरु जाम्भोजी ने कार्तिक बदी अष्टमी को समराथल धोरे पर विश्नोई संप्रदाय की स्थापना की। खेजड़ली धाम में सन् 1730 में विश्नोई समाज के लोगों ने गुरु जाम्भोजी के संदेश रूंख लीलो नी घावे का अनुसरण करते हुए वृक्षों को बचाने के लिए आत्म बलिदान दिया। यहां 363 विश्नोई स्त्री और पुरुषों ने जोधपुर के दीवान के खेजड़ी के वृक्ष को काटने के आदेश के विरुद्ध वृक्षों से लिपट कर अपनी देह अर्पित कर वृक्षों को बचाया। खेजड़ली में शहीद हुए लोगों की याद में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली में आयोजित किया जाता है।
विष्णु फळ अनंत रसीलो, ध्याता उतरे पार।।
सांचौर जिले के झाब निवासी श्रीराम जाणी ने कहा, गुरु जाम्भोजी का मूलमंत्र था- हृदय से विष्णु का नाम जपो और हाथ से कार्य करो। गुरु जाम्भोजी ने संसार को नाशवान और मिथ्या बताया। वन व वन्य जीवों को बचाने के लिए विश्नोई समाज के लोग अपनी जान तक देने में पीछे नहीं हटते हैं। गुरु जम्भेश्वर महाराज के जीव दया पालणी रूंख लीलो नी घावे उक्ति को चरितार्थ करते हुए अनेक विश्नोईयों ने प्राणोत्सर्ग किया है। आज विश्नोई समाज आर्थिक रूप से भी सक्षम बने हैं। शिक्षा में आगे बढ़ रहे हैं। समराथल धाम विश्नोईयों का आराध्य स्थल है। समराथल को धोक धोरे के नाम से भी जाना जाता है। गुरु महाराज के श्री मुख से उच्चरित वाणी को शब्दवाणी कहते हैं। विश्नोई समाज के लोग अमावस्या को व नित्य प्रति हवन में शब्दवाणी का सस्वर पाठ करते है।
सांचौर जिले के करावड़ी निवासी रामलाल सारण ने कहा, विश्नोई समाज के लोग पर्यावरण रक्षक है। जीव-जन्तु व पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। नागौर जिले में स्थित पीपासर गुरू जम्भेश्वर की जन्म स्थली है। यहां उनका मंदिर है तथा उनका प्राचीन घर और उनकी खड़ाऊ यहीं पर है। समराथल में गुरु जाम्भोजी ने विश्नोई समाज की स्थापना की थी। समराथल धोरे से ही गुरु जाम्भोजी ने लोगों को जागृत किया था। मुक्तिधाम मुकाम में गुरू जम्भेश्वर की समाधि स्थित है। बीकानेर जिले की नोखा तहसील में स्थित मुकाम में सफेद संगमरमर से बना दुधिया रंग में रंगा स्थापत्यकला की दृष्टि से अनुपम मंदिर भी बना हुआ है। जहां प्रतिवर्ष फाल्गुन व आश्विन की अमावस्या को मेला लगता है। लालसर में जम्भेश्वर ने निर्वाण प्राप्त किया था। गुरु जम्भेश्वर निर्वाण स्थल लालासर साथरी धाम है।
जो जन न्हावे उतरे पाप नाम ।।
सांचौर जिले के करड़ा निवासी अनील मांजू ने कहा, फलोदी के पास जाम्बा गांव में गुरु जम्भेश्वर के कहने पर जैसलमेर के राजा जैतसिंह ने यहां एक तालाब बनवाया था। विश्नोई समाज के लिए यह पुष्कर के समान पावन तीर्थ है। यहां प्रत्येक वर्ष चैत्र अमावस्या व भाद्र पूर्णिमा को मेला लगता है।