वहीं 12वीं की पढ़ाई के लिए वो इलाहाबाद ( allahabad ) आ गए और यहां उन्होंने म्योर कॉलेज में अपना अध्ययन किया। लेकिन वो 12वीं कक्षा पास नहीं कर सके जिसके बाद 1922 में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और अपने घर वापस लौट आए। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से अंग्रेजी, बंगाली और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। अपनी पढ़ाई के दौरान से ही सुमित्रानंदन सुंदर रचनाएं करते थे। संत साहित्य और रवींद्र साहित्य का इन पर काफी प्रभाव था। इन्हीं साहित्यिकारों से सुमित्रानंदन पंत का प्रारंभिक काव्य प्रभावित था। उन्होंने अपने जीवन में शादी नहीं की।
साल 1938 में कालाकांकर से प्रकाशित ‘रुपाभ’ नामक पत्र के संपादक रहे। यही नहीं वो आकाशवाणी केंद्र प्रयाग में हिंदी विभाग के अधिकारी भी रहे। उन्होंने ग्रंथि, गुंजन, वीणा, उत्तरा, स्वर्ण किरण, युगवाणी, स्वर्ण धूलि जैसे कई काव्य रचनाएं की। साथ ही उन्होंने कुछ कहानियां और एक जयोत्स्रा नाम का एक नाटक भी लिखा। पद्य और गद्य क्षेत्रों में भी उन्होंने सेवा की है। हालांकि, उनका प्रमुख रूप कवि का ही रहा। लेकिन 28 दिसंबर 1977 की मध्यरात्रि को सुमित्रानंदन पंत ( sumitranandan pant ) का निधन हो गया।