संग्रहालय में दो लाख वर्ष पुराना हाथी दांत का जीवाश्म, द्वार स्तंभ, नर्तक नृत्यांगना, भगवान बुद्ध, हनुमान , शिव पार्वती, शेषशायी विष्णु, गरूडासीन लक्ष्मीनारायण, केशव, विष्णु महिसासुर, गणेश, कार्तिकेय और पाश्र्वनाथ की प्राचीन मूर्तियां मौजूद है। यहां कुल 218 पुरावशेष संकलित है। जिनमें प्रमुखता शैव, वैष्णव तथा जैन धर्म से संबंधित है। प्रशासनिक उपेक्षाओं के चलते पर्यटकों ने आना बंद कर दिया। नतीजतन जिला संग्रहालय की वर्ष 2016-17 में मात्र 220 रुपए आय हुई।
इसे देखने आने वालों के लिए नाम मात्र का शुल्क देना पड़ता है। भारतीय दर्शकों के लिए पांच रुपए तो विदेशी दर्शक मात्र पचास रुपए और यदि फोटोग्राफी की चाह रखने वाले 50 रुपए, वीडियो बनाना है तो 200 रुपए देकर इसी सैर कर सकते हैं। साथ ही 15 वर्ष से कम आयु के दर्शकों एवं विकलांगों के लिए प्रवेश निशुल्क है।
– हाथी दांत जीवाश्म (दो लाख वर्ष प्राचीन)
– पाश्र्वनाथ की मूर्ति (११-१२वीं शताब्दी)
– द्वार स्तंभ (१२-१३वीं शताब्दी)
– नर्तक नृत्यांगना (११-१२वीं शताब्दी)
– शिव स्तंभ (११-१२वीं शताब्दी)
– देव प्रतिमा (१२-१३वीं शताब्दी) कर्मचारियों के भरोसे जिला संग्रहालय
जिला संग्रहालय के प्रभारी सुनील बारधे के पास अन्य चार संग्रहालयों की जिम्मेदारी भी है। जिसके कारण जिला संग्रहालय में वे कभी कभार ही आते हैं। जिला संग्रहालय में अन्य पांच कर्मचारी पदस्थ हैं। बेशकीमती पुरासंपदाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी इन्हीं के भरोसे है। इनमें चार नियमित और एक संविदा कर्मी है। इन सभी के वेतन पर ही सरकार हर महीने लगभग एक लाख रुपए खर्च कर रही है।
पहले यह संग्रहालय मालाखेड़ी के पास किराए के भवन में था। तब हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते थे। वर्ष २००८-०९ में इसे कलेक्टर कार्यालय के पास स्थित एक पुराने भवन में शिफ्ट किया गया। जिसके बाद से संग्रहालय की रौनक गायब हो गई। पर्यटकों की संख्या में भी भारी गिरावट हो गई।