हापुड़ के काठी खेड़ा गांव में एक साधारण किसान के घर जन्मी स्नेह ने बताया कि उनका सपना पुलिस में भर्ती होने का है। उन्होंने बीए की पढ़ाई हापुड़ के एकेपी कॉलेज से की है। स्नेह ने बताया कि मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए पुलिस में भर्ती की तैयारी कर रही थी। इसी बीच रिश्ते की भाभी सुमन जो एक्शन इंडिया नामक संस्था के लिए काम करती हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि उनकी संस्था गांव में सेनेटरी पैड बनाने की मशीन लगाने जा रही है। क्या तुम काम करोगी। इस पर मैंने सोचा कि यह ठीक रहेगा इससे उसकी कोचिंग की फीस भी चली जाएगी। पूछने पर मां ने भी हां की दी। जबकि पिता से स्नेह कहा कि बच्चों के डायपर बनाने का काम करना है। फिर मैंने यह काम करना शुरू कर दिया। स्नेह ने बताया कि इसी बीच एक दिन संस्था की ओर से जिले में काॅडिनेटर का कार्य देखने वाली शबाना के साथ कुछ विदेशी भी आए। इस दौरान उन्होंने कहा कि वे महिलाओं के पीरियड विषय पर एक फिल्म बनाना चाहते हैं। यह सुनते ही मैंने तुरंत हां कर दी। कुछ समय बाद गांव में शूटिंग हुर्इ आैर फिल्म बन गर्इ। अब करीब एक साल बाद पता चला है कि उनकी फिल्म को आॅस्कर के लिए चुन लिया गया है। इसके लिए उन्हें अब भाभी सुमन के साथ अमेरिका जाना होगा। अमेरिका जाने के लिए मेरा और सुमन भाभी का पासपोर्ट बनकर तैयार हो चुका है।
30 मिनट की फिल्म में बेहद गोपनीय जानकारी वहीं जिला काॅर्डिनेटर शबाना कहती हैं कि वे एक्शन इंडिया संस्था से 1997 से जुड़ी हैं। आज जिस फिल्म ‘पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस’ को आॅस्कर के लिए चयनित किया गया है। वह केवल 30 मिनट की फिल्म है, लेकिन इसके पीछे की कहानी लंबे संघर्ष से जुड़ी है। वे कहती हैं कि फिल्म का विषय बेहद गंभीर है। एक्शन इंडिया की डायरेक्टर गौरी दीदी ने बताया था कि अमेरिका की फिल्म डायरेक्टर राइका और निर्देशिका गुनीत मोगा महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक डाॅक्यूमेंट्री बना रही हैं। उन्होंने जब विषय के बारे में बताया तो पहले झटका लगा। क्योंकि जिस विषय पर महिलाएं बात करने में भी हिचकती हैं उस पर फिल्म बनाना आैर उसे दर्शाना बहुत बड़ी बात है। इसके बाद उन्होंने संस्था के लिए गांव में काम करने वाली लड़कियों के साथ उनके परिजनों से बात की। काफी सोचने के बाद सभी ने हां कर दी। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में कुछ एेसे दृश्य दर्शाए गए हैं, जो नारी की व्यक्तिगत गोपनीयता से संबंधित हैं। फिल्म में दर्शाया गया है कि किस तरह गांव की महिलाएं माहवारी में कपड़े का इस्तेमाल कर उसे रात में खेतों में छिपाती हैं। उन्होंने बताया कि आज भी गांव में एेसी महिलाएं हैं, जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं। वह आज भी सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं। वे आज भी गंदे कपड़े को ही माहवारी में इस्तेमाल करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है।