हनुमानगढ़ में अब तक 150 डेंगू के रोगी
जिले में अब तक 150 डेंगू के रोगी सामने आ चुके हैं। यह आंकड़े सरकारी रिकार्ड में दर्ज हुए हैं। जबकि प्राइवेट अस्पतालों में डेंगू के रोगियों की पुष्टि होने पर आंकड़ों को सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं किया गया। क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों में एलाइजा जांच की सुविधा नहीं है। डेंगू की रोकथाम को लेकर कड़े प्रयास नहीं किए गए तो दीवाली तक हर घर में डेंगू पहुंच जाएगा। जिले में बढ़ते डेंगू के रोगियों के कारण प्लेटलेट्स की डिमांड भी बढ़ने लगी है। रक्त से प्लेटलेट्स निकालकर डेंगू के रोगियों को चढ़ाने के लिए दिए जा रहे हैं। तीन तरह का होता है डेंगू बुखार
इससे डेंगू के रोगियों का इलाज किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार डेंगू बुखार तीन तरह का होता है। पहला साधारण डेंगू बुखार, दूसरा डेंगू हैमरेजिक बुखार (डीएचएफ), डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)। इन तीनों में से दूसरे और तीसरे तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है और इससे जान जाने का खतरा नहीं होता लेकिन अगर किसी को डीएचएफ या डीएसएस है और उसका फौरन इलाज लेना चाहिए।
डेंगू बुखार के इन लक्षण पर रखें नजर
साधारण डेंगू बुखार में ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ता है। सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना, आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना। इसके अलावा बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना, शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना।
डेंगू हैमरेजिक बुखार-डेंगू शॉक सिंड्रोम बेहद खतरनाक
डेंगू हैमरेजिक बुखार होने पर नाक और मसूढ़ों से खून आना, शौच या उलटी में खून आना। स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चिकत्ते पड़ जाते हैं। डेंगू शॉक सिंड्रोम होने पर मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन ठंडी महसूस होती है। मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है।
प्लेटलेट्स बॉडी की रोकता है ब्लीडिंग
एक यूनिट प्लेटलेट डेंगू के रोगी को चढ़ाने पर शरीर में पांच से सात हजार प्लेटलेट्स की बढ़ोतरी होती है। डेंगू के गंभीर रोगी को चार से पांच यूनिट प्लेटलेट्स चढ़ाए जाते हैं। आमतौर पर शरीर में ढाई से तीन लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स बॉडी की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं। अगर प्लेटलेट्स एक लाख से कम हो जाएं तो उसकी वजह डेंगू हो सकता है।
डेंगू से इस तरह करें बचाव
प्लेटलेट्स की खपत अधिक होने के कारण उपलब्धता नहीं होने पर एसडीपी की प्रक्रिया अपनाई जाती है। दवा का करें छिड़काव घर या ऑफिस के आसपास पानी जमा न होने दें, गड्ढ़ों को मिट्टी से भर दें, रुकी हुई नालियों को साफ करवाएं और स्थानीय पार्षद व सरपंच को कहकर इलाके में फोगिंग करवाएं और एमएलओ दवा का छिड़काव भी करवाएं। अगर पानी जमा होने से रोकना मुमकिन नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें। फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाएं और फिर भरें।