जहां तक पानी के क्राइसिस का सवाल है, चरम पर है। नदी में बहाव बिल्कुल मंद है। चम्बल सेंचुरी प्रशासन मान रहा है कि चम्बल में जुलाई माह में पानी नहीं आया तो किसी भी कीमत पर
कोटा बैराज और उसके ऊपर दो बांधों के पानी को इसमें छोडऩा जरूरी हो जाएगा, अन्यथा चम्बल सेंचुरी में पल रहे जलीय जीवों को सुरक्षित रखना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि इस समस्या से मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश तीनों संयुक्त रूप से दो-चार हो रहे हैं। वे अपनी चिंता को संभवत: अगले पखवाड़े में केन्द्र को औपचारिक तौर पर करा देंगे। केन्द्रीय जल आयोग इस समस्या से पूरी तरह परिचित है।
चम्बल का जल बहाव पिछले कुछ सालों में लगातार घटा है। आधिकारिक स्तर पर चम्बल में पानी की न्यूनतम औसत धार (रफ्तार) जून 2014 में 0.40 मीटर/प्रति सेकंड रही थी। इस साल 2017 में ये इस रफ्तार की आधी भी नहीं बची है। अभी तक के रिकॉर्ड में यह सबसे कम है। चम्बल बहाव की रफ्तार में आई गिरावट की दर स्थायी है। चम्बल का अधिकतम जल बहाव का औसत 2.58 मीटर प्रति सेकंड है, जो पिछले दस साल में नहीं देखा गया।
सूत्रों के मुताबिक उफान मार रही चम्बल में अधिकतम जल बहाव की अधिकतम गति केवल 2.32 मीटर प्रति सेकंड तक दर्ज किया गया है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में अभी तक का न्यूनतम बहाव जून में करीब आधा मीटर/प्रति सेकंड से कम हो गया है। पानी बहाव और जल की उपलब्धता में सीधा संबंध होता है। जानकारों के मुताबिक जल बहाव (धार) कुंद होने से चम्बल में जल की उपलब्धता में कमी आई है, जो निरंतर घटती जा रही है।
शहर में भी पानी की किल्लत
शहर की 13 लाख से अधिक की आबादी पर जल संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अफसरों को पता है कि अब मात्र 58 दिन का पानी ही तिघरा में शेष रह गया है। बावजूद इसके पानी को एक दिन छोड़कर देने के निर्णय की प्रक्रिया कछुआ गति से चल रही है। हालात यह हैं कि नगर निगम ने जल संसाधन विभाग से पानी की व्यवस्था करने के लिए पत्र लिखा है। लेकिन दो दिनों से जल संसाधन विभाग की ओर से निगम को कोई जवाब नहीं मिल सका है।
ऐसे हालात में एमआईसी और बाद में कोर्ट को भी जल संकट के हालात से अवगत कराया जाना है। जिसमें कम से कम दस दिनों का समय लगना बताया जा रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब सभी जिम्मेदारों को पता है कि पानी तेजी से घट रहा है तो फिर निर्णय करने में देरी क्यों की जा रही है। जानकारों की मानें तो दस दिन की देरी होने पर निर्णय होता है तो 90 दिनों से भी कम का पानी बच सकेगा। एेसे हालात में पानी के दूसरे इंतजामों को करने के लिए समय कम पड़ सकता है।