Read this also: शर्मनाकः पुलिस ने कचरा गाड़ी में शव को भेजवाया अस्पताल भूखमरी के कगार पर पहुंचे इन मजदूरों की कभी कभार मदद उनके आसपास के लोग कर दे रहे हैं। लेकिन यह पेट की भूख मिटाने के लिए नाकाफी साबित हो रही। मदद का यह सिलसिला आखिर कब तक जारी रहेगा, यह सोचकर श्रमिक बेहद चिंतित नजर आ रहे हैं।
मनरेगा में भुगतान समय से नहीं जानकारी के मुताबिक स्थानीय प्रशासन ने बीते दिनों मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की बात कहकर मनरेगा के कार्य शुरू कराने का दावा किया था। इसकी शुरूआत भी हुई जिसके फोटो भी प्रशासन द्वारा सार्वजनिक किए गए लेकिन यह कार्य आगे ज्यादा दिन नहीं चल सके और न ही जिले के सभी गांवों में मनरेगा के कार्य शुरू हुए।
कई पंचायत सचिवों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सबसे प्रमुख वजह मजदूरों को जल्द भुगतान न होना है। शासकीय प्रक्रिया ही ऐसी है कि मजदूरों को भुगतान करने में कम से कम 15 दिन तो लग ही जाते हैं। कभी कभी तो एक माह से भी ज्यादा समय हो जाता है।
शहर के मुकाबले गांव में मजदूरी बेहद कम मजदूरों को शहर में जितने पैसे मिलते थे उससे बहुत कम भुगतान मनरेगा के द्वारा होता है। वहीं मटेरियल के अभाव में निर्माण कार्य पूर्ण न होना है। क्योंकि दूसरे जिलों से आने वाली रेत इस समय नहीं आ पा रही है। जिसके अभाव में यह काम नहीं हो पा रहे हैं। चैथी वजह मई माह में रौद्र रूप धारण कर चुकी गर्मी का सितम है। जिसके कारण भी अधिकांश प्रवासी मजदूर काम नहीं कर पा रहे हैं।
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मजदूर रानू रजक बताते हैं कि हमारे गांव सहित आसपास के किसी भी गांव में मनरेगा के तहत कोई भी काम नहीं चल रहे हैं। न ही आसपास ऐसे कोई निजी निर्माण कार्य हो रहे हैं जहां मजदूरी मिल सके। इससे पहले मैं इंदौर में एक दुकान पर काम करता था जबकि पत्नी एक हॉस्टल में खाना बनाने संबंधी काम करती थी। इन पैसों से जैसे तैसे घर खर्च चल जाता था लेकिन वापस आने पर तो दो वक्त का खाना नहीं मिल पा रहा।
सोनू रजक का कहना है कि इंदौर से लौटने के बाद मुझे परिवार सहित गांव के एक स्कूल में क्वॉरंटीन कर दिया गया। सरपंच की तरफ से जो राशन दिया गया था वह सिर्फ क्वॉरंटीन समय के लिए ही था। इससे बाहर आने के बाद प्रशासन से किसी तरह की आर्थिक या राशन की मदद नहीं मिली है। मनरेगा या कोई निर्माण कार्य भी नहीं हो रहे हैं जहां काम करने के बाद कम से कम दो वक्त की रोटी की जुगाड़ ही हो जाए।