नवरात्रि के इस पवित्र पर्व में मां के नवों रूप का वर्णन करके उनके महिमा का गुणगान किया जाता है। इन दिनों मां के जयकारों से पूरा क्षेत्र दुर्गामयी बन जाता है। मां के नवों रूप उनके विभिन्न गुणों के प्रतीक हैं। उनका पहला रूप शैलपुत्री का है जिसमें वो हिमालय की पुत्री हैं। जिनका पूर्व जन्म दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था। जिसमें भगवान
शिव की व अर्धांग्नी बनी थी। जो पति के अपमान के कारण अग्नि कुण्ड में कूदकर खुद को समाप्त कर लिया था।
अगले जन्म में वह हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई थी, देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारणी, तीसरा चंद्र घंटा, चौथा कुष्मांडा,पांचवा स्कंदमाता, छठां कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महा गौरी व नौवां सिद्धि दात्री है। मां का सातवां रूप काल रात्रि अत्यंत विकराल है, इसी रूप में मां ने बड़े पैमाने पर असुरों का दमन किया था।
नवरात्रि उत्पति के पीछे छिपा रहस्य हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि मनाये जाने के पीछे राजा सुरथ का नाम जुड़ा है जो स्वाभाव से बड़े शालीन व उदार थे। जिनके मंत्री मंडल में ब्राह्मणों का बाहुल्य था। जिन्होंने राजगद्दी की लालच में राजा के ही दुश्मनों से मिलकर उन पर आक्रमण करवा दिया। जिसमें राज की हार हुई और वह सन्यासी का रूप धारण कर अपनी जान बचा कर जंगल में रहने लगे। जहां उन्हें अपनी ही स्त्री, पुत्रों व भाइयों द्वारा घर से निकाला गया एक समाधि नाम का वैश्य मिला। दोनों में परिचय होने के बाद वो महर्षि मेधा के आश्रम मे पहुंचे।
जहां दोनों ने ऋषि को बताया कि इतना कुछ होने के बावजूद हम अपनों को क्यों नहीं भुला पा रहे हैं, तब महर्षि ने उन्हे उपदेश देते हुए कहा कि मन शक्तियों के अधीन होता है जिनके श्रोत का नाम आदि शक्ति भगवती है, जिनके विद्या व अविद्या दो रूप हैं, जिसे सुनकर सुरथ ने आदिशक्ति भगवती के बारे में विस्तार से जानना चाहा तो महर्षि बोले राजन वो आदि शक्ति देवी मां दुर्गा नित्यस्वरूपा तथा विश्वव्यापनी है। उसके उत्पति का प्रमुख कारण इस तरह है कि जब कल्पांत के समय महा प्रलय हुआ तो उस समय विष्णु भगवान क्षीर सैया पर सो रहे थे, तभी उनके कानों से मधु और कैटभ नाम के दो दैत्य उत्पन्न हुए जो धरती पर कदम रखते ही विष्णु के नाभि से उत्पन्न कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा को मारने के लिए दौड़ा लिए।
पांच हजार वर्षों तक चला विष्णु व मधु कैटभ का युद्ध मधु कैटभ से बचने के लिए जब ब्रह्मा ने विष्णु का आवाहन किया तो विष्णु ने मधु कैटभ को मारने के लिए निरंतर पांच हजार वर्षों तक युद्ध किया बावजूद इसके जब वो इन दैत्यों को न मार सके तो मधु कैटभ ने विष्णु की वीरता देख उनसे खुश होकर उन्हे वरदान मांगने के लिए कहा तो विष्णु ने वरदान में दोनों की मौत मांगी जिसे मधु कैटभ ने हंसते हुए स्वीकार किया और तत्पश्चात मां आदिशक्ति की शक्तियों के समावेश से भगवान विष्णु उनका वध करने में सफल हो पाये।
मां दुर्गा के असीम शक्तियों को देख देव व मानव दोनों धन्य हो उठे और 9 दिनों की रात्रि तक विधि विधान से लगातार मां दुर्गा की पूजा अर्चना की गयी तभी से यह त्यौहार नवरात्रि के नाम से जाना जाने लगा, और इन दिनों भक्तगण मां दुर्गा की पूजा अर्चना करके अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।