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दरअसल, लाल गुलाब का रंग इन दिनों कुछ फीका सा है। गेंदे के फूल ने जैसे खुद को मुरझाया सा मान लिया है। वजह है कोरोना के बड़े खतरे को देखते हुए किया गया लॉकडाउन। लिहाजा, अब खुशबू फैलाने वाला और मन मोह लेने वाला ये फूल या तो किसानों के घर में सड़ रहा है, या फिर खेतों में ही बर्बाद हो रहा है। वजह भी बड़ी है कि किसी तरह लोगों की जिंदगी बचाई जा सके। इसकी वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने सब कुछ बंद कर दिया । इन किसानों की रोज की जिंदगी भी रुक सी गई है। गुलाब और गेंदे के फूलों की खेती करने वाले ये किसान राह देख रहे हैं कि आखिर कब सरकार इनकी कोई सुध लेंगी, क्योंकि इनके खेतों में उगने वाले फूलों के लिए अब खरीदार नहीं हैं। फूल की दुकानों के साथ-साथ वो फैक्टरियां बन्द हैं, जहां इनके फूलों की सप्लाई होती थी। इसके चलते इनको रोटी का संकट भी होने लगा है ।
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दरअसल, ग़ाज़ियाबाद के मोदी नगर इलाके में आने वाले मकीमपुर मंड़ैया गांव और उसके आसपास के 4 , 5 गांव के करीब 3 से 4 हजार किसानों के जीवन यापन का एक मात्र सहारा ये फूल ही हैं । जिनकी खेती ये किसान करते है । और लॉक डाउन की वजह से इन जैसे सैकड़ो किसानों की रोजी रोटी खतरे में है । गांव की कई एकड़ भूमि में कई तरह के फूलों की खेती की जाती है। लेकिन कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में लॉक डाउन की स्थिति है। इसके चलते मंदिर, शादी व अन्य समारोह बंद हैं और फूलों का कारोबार ठप है। अब कोई सरकारी मदद की आस इन किसानों को हैं । जिससे इस संकट से किसान उभर पाये ।
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गौरतलब है कि मकीमपुर गांव के साथ और कई गांव की आय का साधन सिर्फ फूलों की खेती है । कई दशकों से यहाँ के किसान फूलों की खेती पर ही निर्भर है । और उनके गांव की आय का मुख्य साधन फूलों की खेती है। लॉक डाउन से पहले शादी और समारोहों में फूलों की डिमांड बढ़ रही थी ।साथ ही माता के नवरात्रों के त्योहार में भी हर साल फूलों की अच्छी बिक्री होती है , लेकिन कोरोना के चलते लॉक डाउन चल रहा है, और ऐसे में सबकुछ बंद होने से फूलों की डिमांड ही खत्म हो गई है। इसके चलते अधिकतर किसानों ने अब अपनी फूलों की खेती को खुद ही नष्ट करना शुरु कर दिया है । किसानों ने कहा कि सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। ताकि उन्हें अपने नुकसान का मुआवजा मिल सके और वे आर्थिक संकट से बाहर निकल सकें।