गैर हिंदुओं के प्रवेश पर शंकराचार्य का क्या है मत
शंकराचार्य सदानंद सरस्वती महाराज का कहना है कि महाकुंभ हिंदू धर्म का प्रमुख आयोजन है, जिसमें गंगा स्नान, देवताओं का आह्वान और पूजा-अर्चना होती है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों का हमारे देवी-देवताओं और परंपराओं में विश्वास नहीं है, उनके लिए महाकुंभ में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “जो लोग वंदे मातरम कहने में भी दिक्कत महसूस करते हैं, उन्हें महाकुंभ में प्रवेश क्यों दिया जाए?”
जानबूझकर हिंदू संस्कृति को मिटाने का प्रयास
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की संस्कृति और परंपराओं को ऐतिहासिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास हुआ है। मुगल काल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उस समय हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, जबकि अन्य भूमि भी उपलब्ध थी। उन्होंने इसे जानबूझकर हिंदू संस्कृति को मिटाने का प्रयास बताया। शंकराचार्य ने यह भी कहा कि अब अगर खोई हुई धरोहरों को वापस पाने के प्रयास किए जा रहे हैं, तो यह गलत नहीं है, बल्कि हमारा अधिकार है। महंत रवींद्र पुरी ने क्या कहा?
महाकुंभ के दौरान मुसलमानों के दुकान लगाने के मुद्दे पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि मुसलमानों से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है, लेकिन वे महाकुंभ में दुकानें न लगाएं। उनका तर्क था कि मुसलमानों द्वारा चलाए जाने वाले खाद्य स्टॉल और अन्य दुकानें धर्म के प्रति अनादर का भाव पैदा कर सकती हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जानबूझकर भोजन को अपवित्र करने के मामले सामने आए हैं, जो कि हिंदू श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।
महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन को लेकर साधु-संतों और धार्मिक नेताओं का कहना है कि यह हिंदू धर्म और संस्कृति का केंद्रबिंदु है। इसमें उन्हीं लोगों को भागीदारी करनी चाहिए, जो हिंदू परंपराओं और देवी-देवताओं का सम्मान करते हैं। इस प्रकार के बयान महाकुंभ के दौरान धार्मिक शुद्धता और परंपराओं की रक्षा को प्राथमिकता देते हुए दिए गए हैं।