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दो बच्चों के चककर में नहीं मिलेंगे सैनिक और संयासी…स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कही बड़ी बात

सनतान बोर्ड बनाने की चर्चा सुर्खियां बटोर रही है। हिन्दू धर्माचार्यों और अन्य धर्म के लोग भी अपनी राय दे रहे हैं। ऐसे में अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद  सरस्वती ने क्या कहा आइये बताते हैं। 

प्रयागराजJan 09, 2025 / 07:06 pm

Nishant Kumar

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती

सनतान बोर्ड बनाने की चर्चा पुरे देश में हो रही है। सनातन धर्म के आचार्यों और अन्य धर्म के गुरुओं ने भी इसको लेकर लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने भी अपनी बात कही है। उन्होंने कहा कि हर मंदिर का स्वतंत्र बोर्ड बनाना चाहिए। 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने क्या कहा ? 

सनातन बोर्ड को लेकर स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि हम सनातन बोर्ड के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। ऐसा कोई बोर्ड नहीं बनना चाहिए। ये फालतू की बातें हैं। सनातन बोर्ड बनाने की आड़ में कहीं न कहीं उनके हाथों में तो नहीं खेल रहे जो आल इंडिया मुस्लिम प्रसन्ना बोर्ड और वक़्फ़ बोर्ड को जिन्दा रखना चाहते हैं। हम उसको समाप्त करना चाहते हैं और आप चाहते हैं कि वो भी बना रहे और हमारा भी एक बोर्ड बन जाए। 

कौन देगा अपनी जमीनें ? 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि सनातन बोर्ड बन जाए तो इसमें अपनीं जमीने कौन देगा ? कहां से आएंगी जमीने ? कौन अपना दान देगा ? आवश्यक है कि 4 लाख हिन्दुओं के मठ-मंदिर जो सरकार चला रही है वो मंदिर वापस मिले। प्रत्येक मंदिर की पूजा पद्धति उनकी परंपरा उसकी रीति-नीति के अनुसार उनके क्षेत्र से विशेषकर एक दलित और एक महिला उस ट्रस्ट में बने। प्रत्येक मंदिर का स्वतंत्र ट्रस्ट हो। 

दो बच्चों के चककर में नहीं मिलेंगे सैनिक और सन्यासी 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि आगे आने वाले दिनों में सन्यासी और सैनिक ये दो बच्चों के चक्कर में नहीं मिलने वाले हैं। तो पीठ और परंपरा कौन निभाएगा ? तो अगर समाज का वर्ग बनाना है तो प्रत्येक मंदिर का स्वतंत्र बोर्ड बनाना होगा। ये वक़्फ़ बोर्ड टाइप सनातन बोर्ड का शिगूफा नहीं चलता है। जो लोग इसको हवा दे रहे हैं उनसे इसके बारे में 10 लाइन बोलवा लीजिये। 
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बस चर्चित होना है 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि बस चर्चित होना है और समाज में परिचित होना है ताकि धर्म की दूकान चलती रहे। इसके लिए कुछ भी आएं-बाएं-साएं बोलते रहो। हिन्दू समाज के लिए ठोस रणनीतिक आधार पर आगे बढ़ने के लिए एक पूरा रोडमैप चाहिए। 

कुंभ में हिन्दू धर्म के रोडमैप पर चर्चा 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि इस कुंभ में रोडमैप की चर्चा होगी। विश्व हिन्दू परिषद भी करेगी संघ भी करेगा अखिल भारतीय संत समिति भी करेगी अखाड़ों के पदाधिकारी भी उस चर्चा में भाग लेंगे और काशी विद्वत परिषद भी करेगी। 
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भारत सरकार को मिलनी चाहिए जमीन 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि हम सभी मिलकर के एक साथ एक निश्चित मार्ग पर आगे बढ़ेंगे जिसमे समग्र हिंदी समाज दुनिया के 129 देशों में रहता है। उस हिन्दू के बेहतरी के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं। हिन्दू अचार संहिता जैसा भी प्रश्न है। हिन्दू बोर्ड वक़्फ़ बोर्ड के तर्ज पर प्रकारांतर के हम वक़्फ़ बोर्ड का बचाव कर रहे हैं। 9 लाख हेक्टेयर जमीन जो उनके पास है वो भारत सरकार की है। वो भारत सरकार को वापस मिलनी चाहिए।

नहीं चाहिए हिन्दू बोर्ड 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि हमे कोई हिन्दू बोर्ड नहीं चाहिए इसी तरीके से। हमे ये चाहिए। हमे ये नहीं चाहिए कि एक राक्षस को मारने के लिए कोई दूसरा राक्षस पैदा करेंगे। हमे तो स्वतंत्र हिन्दू मंदिरों की स्वतंत्र की व्यवस्था चाहिए। सभी अपने-अपने मंदिर चलाये। 
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सबको मिले सम्मान 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने आगे कहा कि अपने अपने पूजा पद्धति जहां नारी का सम्मान हो, दलित का सम्मान हो। सनातन हिन्दू धर्म की समग्र व्यवस्था में जहां रैदास भी भजन गए सके, जहां कबीर भी अपनी गाथा सुना सके, जहां मीरा के पद भी गूंजते हुए मिले, जहां रामानंदाचार्य और भगवद्पाठ शंकराचार्य के विशिष्ट द्वैत-अद्वैत का दर्शन भी मिले। ऐसे हिन्दू दर्शन चाहिए। हमे कोई बंधा हुआ बोर्ड की कल्पना नहीं है। ‘

महाकुंभ की स्नान प्रक्रिया 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि महाकुंभ के तीर्थराज के स्नान की प्रक्रिया में महानिर्वाणी अखाडा और उसके पीछे अटल अखाडा तत्पश्चात निरंजनी अखाडा और निरंजनी अखाड़े के पीछे आनंद अखाडा उसके पश्चात जूना अखाडा, आवाहन अखाडा, अग्नि अखाडा और पीछे के दिनों में किन्नर अखाडा के नाम से एक शब्द था जिसका विलय जूना अखाड़े में हो चूका है तो उनके महामंडलेश्वर स्नान करते हैं उनके साधू स्नान करते हैं यहीं क्रम तीर्थराज प्रयाग का है। महानिर्वाणी, निरंजनी तत्पश्चात जूना। दोनों के युग्म बने हुए हैं महानिर्वाणी के साथ अटल,  निरंजनी के साथ आनंद, जूना के साथ अग्नि और आवहान अखाडा। ऐसी ही प्रक्रिया में स्नान होता है। ये हजारों वर्षों की हमारी परंपरा है। यहीं आगे भी चलेगी। 

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