जकात क्या है?
जकात को साधारण शब्दों में एक तरह का दान होता है। जो ईद की नमाज अदा करने से पहले जरूरतमंद, असहाय लोगों को दी जाती है। जकात को इस्लाम में फर्ज बताया गया है, जिसे अपनी हैसियत के अनुरूप जरूर पूरा करना चाहिए। इसलिए इस्लामी कानून के अनुसार व्यक्ति के लिए जकात देना अनिवार्य माना गया है।
किस तरह निकाली जाती है जकात?
अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि कितनी जकात देना सही माना जाता है, जिससे कि अल्लाह खुश हो और उसका रहम-ओ-करम आप पर हमेशा बना रहे। तो आपको बता दें कि एक साल से अधिक समय तक रखे सोने के गहने से लेकर नकदी आदि का कुल मूल्य का 2.5 प्रतिशत जकात निकाली जाती है। साधारण शब्दों में कहें, तो जकात उन चीजों की अदा की जाती है, जिसे खरीदे या रखे हुए पूरा एक साल हो चुका हो।
किन लोगों पर फर्ज है जकात
यदि किसी घर में सात सदस्य हैं और वो सभी नौकरी या फिर किसी व्यवसाय आदि के माध्यम से पैसा कमा रहे हैं, तो परिवार के हर एक सदस्य को जकात देना फर्ज माना गया है। साधारण शब्दों में कहें, तो घर में अगर बेटा-बेटी भी पैसा कमाते हैं, तो सिर्फ मां-बाप ही जकात के हकदार नहीं होंगे, बल्कि बेटा-बेटी भी अपनी संपत्ति में से जकात अदा करेंगे।
किसे देनी चाहिए जकात
जकात के लिए पहले अपने आस-पड़ोस को देखा जाता है कि कौन वहां जरूरतमंद या असहाय है, जो खुशियों के साथ ईद नहीं मना सकता है। अगर आस-पड़ोस में कोई नहीं है, तो फिर किसी अन्य गरीब या जरूरतमंद को जकात दिया जाता है, ताकि वह भी खुशी से ईद मना सके।
यहां जानें क्या होता है फितरा?
जकात की तरह कहीं फितरा भी ईद की नमाज अदा करने से पहले दिया जाता है। जहां जकात में अपनी नकदी, सोने के गहनों का 2.5 प्रतिशत दिया जाता है। वहीं, फितरा सवा दो किलो गेहूं या फिर उसके बराबर की रकम दी जाती है। आप चाहें तो फितरा इससे भी ज्यादा दे सकते हैं। इसके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे। कोई भूखा न रहे। कोई गमगीन न सोए। सभी के घर में खुशियों का माहौल हो।
नोट- हालांकि कई लोग जकात या फितरा 26वें, 27वें रोजे के दिन या फिर अलविदा जुमे को ही दे देते हैं, ताकि जरूरतमंद, गरीब लोग भी आम लोगों की तरह ईद की हर खुशी को महसूस कर सकें।