शिष्यों द्वारा गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के प्रति आस्था को प्रकट करते हुए उनका पूजन किया जाता है। हिंदू पंचांग में प्रति वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा के रूप में दर्शाया जाता है। गुरु का इस दिन विधिवत रूप से पूजन किया जाता है। वहीं इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं।
जानकारों का मानना है कि सामान्य शब्दों में गुरु वह इंसान होता हैं जो ज्ञान प्रदान कर हमारे जीवन को अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाता हैं। आषाढ़ की पूर्णिमा पर मनाया जाने वाले इस पर्व को समूचे भारत में लोग अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
गुरु पूर्णिमा 2023 की तिथि एवं मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत जुलाई 2, 2023 शाम 08 बजकर 31 मिनट से
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति जुलाई 3, 2023 शाम 05 बजकर 08 मिनट पर
गुरु पूर्णिमा : पूजा विधि
– गुरु पूर्णिमा को ब्रह्रममुहूर्त में स्नान आदि नित्यकर्मों के बाद शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए।
– इसके बाद पूजा स्थल को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करें, फिर वहां व्यास जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करना चाहिए।
– अब ताजे फूल या माला व्यास जी के चित्र पर चढ़ाएं और इसके पश्चात अपने गुरु के पास उनके दर्शन के लिए जाना चाहिए।
– ऊंचे सुसज्जित आसन पर अपने गुरु को बैठाने के पश्चात उन्हें फूलों की माला अर्पित करें।
– अब फल, फूल, वस्त्र व माला अर्पित करने के पश्चात सामथ्र्य अनुसार उन्हें दक्षिणा चढाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा से जुड़ीं कुछ खास बातें
– गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं के अलावा अपने परिवार के बड़े सदस्य जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरु तुल्य मानते हुए उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
– ध्यान रहे कि गुरु का ज्ञान ही विद्यार्थी को विद्या देता है, जिसके बाद उसके ज्ञान से ही शिष्य का अज्ञान और अंधकार दूर हो जाता है।
– शिष्य के लिए गुरु की कृपा ही ज्ञानवर्धक और कल्याणकारी सिद्ध होती है। ध्यान रहे कि संसार की समस्त विद्याएं गुरु के आशीर्वाद से ही प्राप्त होती है।
– गुरु से मंत्र प्राप्त करने के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन होता है श्रेष्ठ।
– गुरुजनों की गुरु पूर्णिमा के दिन सेवा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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गुरु पूर्णिमा का महत्व
आध्यात्मिक गुरुओं और अकादमिक शिक्षकों को नमन और धन्यवाद करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व शिष्य मनाते हंै। अपने शिष्यों की भलाई के लिए गुरु अपना पूरा जीवन तक न्योछावर कर देते हंै। आध्यात्मिक गुरु हमेशा से संसार में शिष्य और दुखी लोगों की मदद करते आये हैं और ऐसे ही अनेक उदाहरण हमारे सामने मौजूद हंै जब गुरुओं ने अनेक दुखी लोगों की समस्याओं का निवारण अपने ज्ञान से किया है।
स्वामी विवेकानंद और गुरु नानक भी ऐसे ही गुरु थे जिन्होंने सदैव संसार की भलाई के लिए काम किया हैं। गुरु पूर्णिमा पर्व को भारत सहित भूटान और नेपाल के अलावा कुछ अन्य देशों में भी लोग मनाते हैं। हमारे देश भारत से चलकर गुरु-शिष्य परंपरा दूसरे देशों में गई है। जानकारों की मानें तो हमेशा से ही आध्यात्मिक गुरु प्रवास पर रहते थे और इसी प्रवास के कारण भारत की ये परम्पराएं दूसरे देशों में भी फैल गई।
गुरु पूर्णिमा का सांस्कृतिक महत्व
गुरुओं को हिंदू, बौद्ध और जैन संस्कृतियों में एक विशेष स्थान दिया गया है। ऐसे में अनेक शैक्षणिक और आध्यात्मिक गुरु इन धर्मों या संस्कृतियों में हुए हैं जिन्हें भगवान के बराबर दर्जा दिया गया है। हिंदुओं में आदिशंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु सहित अनेक प्रसिद्ध गुरु हुए। ये हजारों गुरुओं में से कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने आध्यात्मिक रूप से जनमानस की सेवा की, वहीं इसके विपरीत अकादमिक-आध्यात्मिक गुरु, ज्ञान और विद्या प्रदान करते है। ‘गुरु पूर्णिमा’ का त्यौहार सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।