कहा जाता है कि छठ पर्व के जरिए व्रती सूर्य देवता, देवी मां उषा ( सुबह की पहली किरण ) और प्रत्युषा ( शाम की आखिरी किरण ) के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। मान्यता है कि सूर्य ऊर्जा का पहला स्रोत है, जिसके जरिए पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है।
छठ एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें नियमों को बड़ी सख्ती के साथ पालन किया जाता है। इस पर्व में शुद्धता और पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इन नियमों का पालन श्रद्धालुओं को 4 दिन तक करना पड़ता है, तब जाकर पर्व सफल हो पाता है। इस दौरान व्रती कसी भराई भी करती हैं।
क्या है कोसी भराई? अस्ताचलगामी सूर्य ( डूबते सूर्य ) को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं घरों के आंगन में पांच ईखों की मदद से कोसी का निर्माण करती हैं और कोसी के बीच कुम्हार द्वारा दिये गये गणेश स्वरूप का हाथी रखकर उसे दीपों से सजाती है। नये सूती कपड़ों में प्रसाद रखकर उसे ईखों के बीच लपेट कर टांग देती हैं। इस दौरान महिलाएं गीत भी गाती हैं।
सुबह के अर्घ्य में गंगा घाट पर कोसी सजायी जाती है। अर्घ्य देने के बाद अर्पित प्रसाद गंगा में प्रवाहित कर श्रद्धालु ईखों को लेकर घर लौट जाते हैं। कोसी भराई में इस्तेमाल किये गए पांच ईख पंचतत्व होते हैं। ये पांच ईख भूमि, वायु, जल, अग्नि और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
क्यों की जाती है कोसी भराई? मान्यता के अनुसार, अगर कोई मन्नत मांगता और वह छठ मैया की कृपा से पूरी हो जाती है तो उसे कोसी भरना पड़ता है। जोड़े में कोसी भरना शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि कोसी भराई के जरिए छठ मइया का आभार व्यक्त किया है।