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आखिर 6.50 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान कैसे?
रेटिंग एजेंसी एक्यूट की रिपोर्ट को आधार मानकर चले और इस बात को समझें कि लॉकडाउन वैसा ही रहेगा जैसा बीते तीन हफ्तों में रहा है तो यह नुकसान साढ़े लाख करोड़ रुपए से ज्यादा तक पहुंच सकता है। एक्यूट की पिछली रिपोर्ट के अनुसार भारत की इकोनॉकी को लॉकडाउन की वजह से रोज 35 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। अगर 19 दिन का हिसाब किताब लगाया लगाया जाए तो 6.65 लाख करोड़ रुपए का बैठ रहा है। मतलब साफ है कि इस बार भी देश की इकोनॉकी में एक और बड़ा नुकसान देखने को मिल रहा है। अब देखने को वाली बात होगी सरकार किस तरह की राहत देश की जीडीपी को देती है।
20 अप्रैल को मिल सकती है राहत
वैसे यह लॉकडाउन थोड़ा अलग होगा। वास्तव में नरेंद्र मोदी की ओर से 20 अप्रैल के बाद थोड़ी राहत देने की बात भी कही है, यानी आने वाले दिनों में एमएसएमई और मैन्युफैक्चरिंग युनिट्स में काम होता दिखाई दे सकता हैै। जो देश की इकोनॉमी के लिए काफी अच्छा है। लॉकडाउन के कारण देश क आम जनता में नौकरी और बाकी सिक्योरिटी को लेकर निगेटिव सेंटीमेंट्स देखने को मिलें हैं, उनमें कमी आएगी। फैक्ट्रीज और इंडस्ट्रीज में काम होगा तो नौकरियों में इजाफा होने के साथ मजदूरों और तकनीकी कामगार दोबारा से अपने काम में लौट आएंगे। लेकिन यह छूट सशर्त देने की बात कही गई है। अगर लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं किया गया तो छुट बिल्कुल समाप्त कर दी जाएगी।
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डेढ़ फीसदी रह सकती है देश की इकोनॉमी
तमाम आर्थिक एजेंसियों की ओर से देश की विकास दर को कम करके आंका है। वित्त वर्ष 2020-21 की विकास दर को 6.2 फीसदी आंकने वाली आर्थिक एजेंसियों का अनुसार 1.5 फीसदी से 2.5 फीसदी के बीच में लाकर खड़ा कर दिया है। दुनिया की दो आर्थिक एजेंसियों आईएमएफ और वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट भारत की दृष्टिकोण से काफी भयावह है। दोनों भारत की जीडीपी न्यूनतम अनुमान डेढ़ फीसदी ही रखा है। जानकारों की मानें तो वल्र्ड बैंक और आईएमएफ की ओर से भारत की विकास दर को बाकी यूरोपीय देशों के मुकाबले काफी अच्छा आंका है। क्योंकि दुनिया के कई देश ऐसे हैं जिनकी विकास दर जीरों या फिर माइनस में चली गई है। ऐसे में भारत की स्थिति कई देशों मुकाबले काफी बेहतर है।