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रोग और उपचार

आयुर्वेद से ठीक रखें थायरॉइड हार्मोन

हमारे गले में थायरॉइड ग्रंथि होती है जो गले में स्वरयंत्र के ठीक नीचे व सांसनली के दोनों तरफ तितली के पंख के समान फैली होती…

Aug 16, 2018 / 04:51 am

मुकेश शर्मा

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हमारे गले में थायरॉइड ग्रंथि होती है जो गले में स्वरयंत्र के ठीक नीचे व सांसनली के दोनों तरफ तितली के पंख के समान फैली होती है। इससे निकलने वाले हार्मोन जब हमारे खून में कम या अधिक मात्रा में पहुंचते हैं तो शरीर में कई प्रकार की समस्याएं होने लगती हैं। थायरॉइड ग्रंथि को मस्तिष्क में मौजूद पिट्यूटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है जिससे थायरॉइड स्टीम्युलेटिंग हार्मोन (टी.एस.एच.) की उत्पत्ति होती है। थायरॉइड ग्रंथि जब कम मात्रा में हार्मोन बनाने लगती है तो शरीर में हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या हो जाती है। जानते हैं इसके बारे में।

रोग की वजह

ऑटो-इम्यून-डिसऑर्डर (इसमें शरीर का रोग प्रतिरोधी तंत्र थायरॉइड ग्रंथि पर आक्रमण कर देता है), शरीर में अन्य हार्मोन का असंतुलन, रेडिएशन, दवाओं व सर्जरी के दुष्प्रभाव, कम मात्रा में आयोडीन का सेवन और फैमिली हिस्ट्री होने पर हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या हो सकती है।

लक्षणों को पहचानें

वजन बढऩा, थकान व कमजोरी, उदासी, मांसपेशियों व पैरों में सूजन और खिंचाव, याददाश्त में कमी, आंखों में सूजन, त्वचा का रूखा व मोटा होना, कब्ज, बालों का झडऩा, माहवारी की अनियमितता या अधिक स्राव, सर्दी लगना व कम पसीना आना, आवाज में भारीपन और नाखून मोटे होकर धीरे-धीरे बढऩे जैसे लक्षण होने लगते हैं।

ये चीजें खाएं

प्याज, चुकंदर, कचनार, काला नमक, मूली, शलजम, ब्राह्मी, कमल-ककड़ी, कमलनाल, सिंघाड़ा, हरी-सब्जियां, हल्दी, फूल-मखाने, अनार, सेब, मौसमी, आंवला, जामुन, अनानास, करेला, टमाटर, पालक, आलू, मटर, टिंडा, परवल, पनीर, दूध, दही और लस्सी आदि को अपनी डाइट में शामिल करें।

आयुर्वेदिक इलाज से होगा लाभ

ब्राह्मी, गुग्गुलु, मघ पीपल, कालीमिर्च, त्रिफला, दाख (मुनक्का), दशमूल इत्यादि का नियमित प्रयोग करने से हार्मोन में असंतुलन की समस्या दूर होती है।
10 किलो गेंहू के आटे में दो किलो बाजरे का आटा व दो किलो ज्वार का आटा मिलाएं। इस आटे से बनी रोटियां खाने से लाभ होता है।
100 ग्राम की मात्रा में दानामेथी व सूखे धनिए को बारीक पीस लें। रात के समय इस मिश्रण की दो छोटे चम्मच की मात्रा दो गिलास पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट इस पानी को पिएं व मिश्रण को चबाकर खाएं।

आंवला, गोखरू व गिलोय चूर्ण को समान मात्रा में मिलाएं। इसे 1-3 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रोगियों का तनाव दूर होता है।
कचनार गुग्गुलु की 3-3 गोलियां दिन में दो बार, दशमूलारिष्ट या दशमूल क्वाथ 20-20 मिली पानी से लें।

सुबह खाली पेट गो-मूत्र या इसके अर्क का सेवन करना लाभकारी है। सुबह मलत्याग के बाद गो-मूत्र को बारीक कपड़े से छानकर प्रयोग करें। इसेे लेने के बाद एक घंटे तक कुछ न खाएं। महिलाएं मासिक धर्म के दौरान भी इसे ले सकती हैं। गर्मियों में गो-मूत्र कम मात्रा में लें क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। इसके प्रयोग के दौरान चाय, कॉफी, मांस, अंडा, दही, गरिष्ठ भोजन व मादक पदार्थों से बचें।

दशमूल, दानामेथी, कलौंजी, अजवाइन, भुना जीरा, मीठी सौंफ, चपटी सौंफ व करी पत्ता सभी को 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर दरदरा कूट लें। रात को 2 गिलास सामान्य पानी में 2 चम्मच इस मिश्रण को भिगो दें। सुबह धीमी आंच पर इस पानी को बिना ढके पकाएं। यह पानी चौथाई शेष रहने पर इसे छान लें व हल्का गुनगुना पिएं। यह रोगी की सूजन व मोटापे को कम करने में फायदेमंद है। गर्मियों में प्रयोग न करें क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। ताजा काढ़ा बनाएं व सुबह ही इसे पिएं। गर्भवती व पित्त प्रकृति वाले प्रयोग न करें।

माहवारी कम आना, अत्यधिक दर्द और अनियमितता जैसी समस्या होने पर रात को सोने से पहले एक गिलास उबले हुए दूध में चुटकी भर हल्दी डालकर पिएं।
हाइपोथायरॉइडिज्म में रात को सोते समय 1-3 ग्राम की मात्रा में त्रिफला चूर्ण/त्रिफला के दो कैप्सूल/ ३० मिलिलीटर एलोवेरा और त्रिफला जूस रोजाना लें।

पंचकोल चूर्ण व त्रिफला चूर्ण (दोनों 100 ग्राम मात्रा में) मिलाकर रखें। सुबह-शाम भोजन के बाद चौथाई चम्मच लेने से बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल व वसा नियंत्रित होते हैं।

शरीर में सूजन होने पर पुनर्नवा मंडूर की 2-2 गोलियां सुबह व शाम ले सकते हैं। चरक संहिता में बताए गए वर्धमान पिप्पली का सेवन सौंठ के काढ़े के साथ करने से लाभ होता है। नियमित रूप से सुदर्शन चूर्ण व पिप्पली मूल से भी लाभ होगा।

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