योगेश्वर द्वादशी की पहली कथा (Yogeshwar Dwadashi Ki Pahali Katha)
Yogeshwar Dwadashi Katha 2024 : योगेश्वर द्वादशी की कथा के अनुसार माता लक्ष्मी के अनुरोध पर जब वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त किया और अपने पति जालंधर का कटा सिर लेकर सती हो गई। इसके कुछ समय बाद वृंदा की चिता की राख से एक पौधा निकला, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने कहा कि शालिग्राम नाम से मैं इस पत्थर में हमेशा के लिए रहूंगा। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने कहा कि मेरी पूजा में तुलसी को शामिल किया जाएगा, तभी मेरी पूजा सफल मानी जाएगी। इसके बाद से कार्तिक मास की द्वादशी तिथि के दिन से शालिग्राम और तुलसी की पूजा की जाने लगी।
कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार योगेश्वर द्वादशी के दिन विष्णु जी का विवाह तुलसी जी साथ हुआ था। इस पावन तिथि पर देवलोक में विभिन्न उत्सव हुए थे। उसके बाद से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी का विवाह शालिग्राम से किया जाने लगा। साथ ही दोनों की पूजा की जाने लगी।
योगेश्वर द्वादशी की दूसरी कहानी (Yogeshwar Dwadashi Ki Dusari Kahani)
योगेश्वर द्वादशी की दूसरी कथा महाभारत के समय कुरूक्षेत्र युद्ध से पहले की है। इसके अनुसार अर्जुन और दुर्योधन दोनों श्रीकृष्ण भगवान के पास पहुंचे और अपनी सेना में शामिल होने का अनुरोध किया। इस दौरान उन्होंने दुर्योधन को अपनी अक्षौहिणी सेना दी और अर्जुन के पक्ष में स्वयं रहने की बात कही। साथ ही शस्त्र न उठाने का वादा किया। युद्ध में एक समय ऐसा आया जब रणभूमि में भीष्म पितामह शेर की तरह गरज रहे थे और उनको वश में करने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी। तब श्री कृष्ण ने उन्हें रोकने के लिए अपनी कसम तोड़ दी और एक रथ के पहिए को शस्त्र के रूप में अपने हाथ में उठा लिया। इस प्रसंग के बाद से ऐसा माना जाता है कि अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने वचन को तोड़ दिया था। इसके अलावा उन्होंने कुरूक्षेत्र में गीता का ज्ञान देकर लोगों को कृतार्थ किया, जिसमें कर्म योग, भक्ति योग आदि का संदेश था। इसी कारण कार्तिक शुक्ल द्वादशी को भगवान के योगेश्वर स्वरूप की पूजा की जाने लगी।
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