इसे पितृ पक्ष का द्वादशी श्राद्ध भी कहा जाता है। दरअसल हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं, और अपने कुल के लोगों को खुश देखकर स्वयं भी प्रसन्न होते हैं।
वहीं मान्यता के अनुसार इस दौरान पृथ्वी में जीवित अवस्था में रहने वाले उनके संबंधी अपने पितरों को श्राद्ध कर्म के माध्यम से याद करने के साथ ही उन्हें तृप्त भी करते हैं, जिससे उन्हें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
माना जाता है कि पितृ पक्ष में धरती पर आए पूर्वज उन्हें याद करने वाली संतानों को आशीर्वाद देते हैं। वहीं श्राद्ध नहीं करने वालों से पितर नाराज होते हैं और उन्हें शाप देकर जाते हैं। ऐसे में जिस तिथि पर जिन पूर्वजों की मौत हुई थी पितृपक्ष में उसी दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है।
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पंडित एके शर्मा के अनुसार श्राद्ध से व्यक्ति को पितरों की कृपा प्राप्त होती है, जिसके फलस्वरूप उसे जीवन की कई परेशानियों से निजात मिलती है। वहीं जहां तक श्राद्ध की द्वादशी तिथि के संबंध में बात है तो इस दिन निमित्त श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
जानकारों के अनुसार जिस प्रकार हर तिथि का अपना महत्व और उद्देश्य है, उसी प्रकार द्वादशी श्राद्ध का भी विशेष महत्व बताया गया है। यह दिन मुख्य रूप से सन्यासियों के लिए निश्चित होता है, इसी कारण इस दिन सन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है।
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यानि इस तिथि को उनका श्राद्ध करने का विधान है, जो साधु-सन्यासी होते हैं। इसके अलावा इस तिथि पर उनका श्राद्ध भी किया जाता है जिनकी इसी तिथि पर मृत्यु हुई होती है। इसके साथ ही इस दिन दान देने की महत्ता बताई गई है।
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जानकारों का कहना है कि पितृ पक्ष में द्वादशी तिथि के श्राद्ध से खास लाभ होते हैं। इस दिन का श्राद्ध राष्ट्रीय हित के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है। द्वादशी श्राद्ध से जहां देश के अन्न भंडार में वृद्धि होती है। वहीं द्वादशी तिथि के श्राद्ध से संतान व ऐश्वर्य सुख मिलने के साथ ही बुद्धि, धारणाशक्ति प्रबल होती है और दीर्घायु की भी प्राप्ति होती है।