यह है सूर्य ग्रहण की पौराणिक
सूर्य ग्रहण की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन में 14 रत्न निकले थे। समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तो, इसके लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध होने लगा। तब श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लिया और देवताओं को अमृतपान करवाने लगे। उस समय राहु नाम के दानव ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृत पान कर लिया। चंद्र और सूर्य ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। तब विष्णुजी ने क्रोधित होकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि राहु ने भी अमृत पी लिया था, इसलिए वह अमर हो गया था। तभी से राहु चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानता है। समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसता है। शास्त्रों में इसी घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का नाम दिया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य ग्रहण
ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चंद्रमा से आच्छादित होता है। यानी कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो, चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है। इसी खगोलीय घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।