प्रियंका की ताकत
प्रियंका गांधी ने भी राहुल की तरह ही हाथ में संविधान की किताब लेकर सांसद पद की शपथ ली। इससे साफ है कि राहुल और प्रियंका सदन में कंधे से कंधा मिलाकर एक दूसरे को मजबूती देंगे। प्रियंका गांधी का भले ही यह चुनावी डेब्यू हो लेकिन पिछले ढाई दशक के सफर में प्रियंका काफी हद तक सियासी तौर पर परिपक्व हो चुकीं हैं। प्रियंका बार-बार पार्टी के लिए संकटमोचक भी बनी है और सदन में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष गतिरोध सुलझाने में भी भूमिका निभा सकती हैं। प्रियंका एक प्रखर वक्ता के रूप में भी उभरी हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस और इंटरव्यू में भी प्रियंका सत्ता पक्ष पर तीखा प्रहार करने से नहीं चूकती हैं। उनकी हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में अच्छी पकड़ है। साथ ही प्रियंका को ईजी-टू-अप्रोचेबल भी माना जाता है। वो बड़े नेताओं से लेकर ग्रास रूट कार्यकर्ताओं तक से संपर्क में रहती हैं। इसके साथ ही उनकी तुलना दादी इंदिरा गांधी से भी की जाती है। चुनावी डेब्यू के बाद उनके समर्थकों की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। ये भी पढ़ें: क्या महाराष्ट्र में सब ठीक! शिंदे बोले- बीजेपी का CM मंजूर, देवेंद्र फडणवीस ने कहा- थोड़ी देर और इंतजार कीजिए… प्रियंका के लिए चुनौती
प्रियंका गांधी की यह नई जिम्मेदारी उनके लिए कई चुनौती भी लेकर आई है। उनके सदन में पहुंचने के बाद गांधी परिवार पर वंशवाद के आरोप और गहरे हो जाएंगे। साथ ही गांधी परिवार के तीन सदस्यों के सदन में होने के चलते तीन पावर सेंटर भी पार्टी के भीतर उभर सकते हैं। इससे पार पाना भी प्रियंका के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। वहीं संसदीय प्रणाली में ढलने और सदन के कामकाज के तौर-तरीकों में प्रियंका कितनी तेजी से ढलती हैं, यह भी उनके लिए एक परीक्षा ही होगी। चुनावी भाषण देना और सदन में सत्ता पक्ष से सवाल करने में भी अंतर होता है। ऐसे में यह प्रियंका के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी। हालांकि उनके समर्थक अभी उत्साह से लबरेज नजर आ रहे हैं। ऐसे में इस नए सियासी कसौटी पर प्रियंका कितनी खरी उतरती नजर आएंगी यह भी देखना दिलचस्प होगा।
प्रियंका का सियासी सफर
अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती सालों में, प्रियंका गांधी वाड्रा ने सक्रिय राजनीति में शामिल होने की बजाय 2004 में उत्तर प्रदेश में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में अपनी मां सोनिया और अमेठी में अपने भाई राहुल के चुनाव अभियानों में सहायता की। राजनीति में प्रियंका का पहला कदम 2004 के भारतीय आम चुनाव के दौरान पार्टी के अभियान को धार देने के लिए पड़ा, जहां उन्होंने दर्जनों निर्वाचन क्षेत्रों में रैलियां कीं और पहली बार उत्तर प्रदेश से बाहर कदम रखा। प्रियंका ने औपचारिक रूप से सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया जब उन्हें 23 जनवरी, 2019 को उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से के प्रभारी कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में नामित किया गया। उन्हें 11 सितंबर, 2020 को पूरे उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया। प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भी लड़ा, हालांकि कांग्रेस को कोई खास सफलता हाथ नहीं लग सकी। इसी दौरान प्रियंका ने यूपी में लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा भी लगाया था, जिसकी देशभर चर्चा भी हुई। 2024 के लोकसभा चुमाव में प्रियंका गांधी ने खुद चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और देशभर में पार्टी के लिए प्रचार किया। पिछले दो चुनावों के मुकाबले पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन भी किया और 400 पार का नारा लगाने वाली भाजपा को 240 सीटों पर रोक दिया। इस चुनाव में राहुल गांधी ने रायबरेली और वायनाड से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। चुनाव बाद राहुल ने रायबरेली से सांसद रहने का फैसाला किया और वायनड सीट खाली कर दी, हाल ही में हुए उपचुनाव में प्रियंका गांधी वायनाड की सीट पर प्रचंड जीत हासिल की।