किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है। आरती की प्रक्रिया में, एक थाल में दीप ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान की मुर्ति या फोटो के सामने श्रद्धा भाव पूर्वक घुमाया जाता है।
आरती करते समय इतना ध्यान रखें-
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती। हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित कर आरती की जा सकती है। अगर मंदिर में दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी दीपक होना चाहिए।
ऐसे करें आरती
आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंका रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के मध्य भाग पर लगायें। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। आरती की थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए।
कहा जाता है कि शनिदेव की आरती और भजनों का श्रद्धा पूर्वक गायन करने से शनि देव व्यक्ति की हर तरह की विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
।। शनिदेव की आरती ।।
1- जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
2- निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।
3- मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।
4- लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
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