1.कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
यह श्लोक सिखाता है कि किसी भी प्राणी को फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
2. योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय
यह जीवन में संतुलन और निर्लिप्तता बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
3. समत्वं योग उच्यते
जीवन में धैर्य और संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
4. विहाय कामान्यः सर्वान् पुमांश्चरति निःस्पृहः
इच्छाओं का त्याग आत्मा की शुद्धि का मार्ग है।
5. आत्मन्येव आत्मना तुष्टः
सच्चा सुख बाहरी साधनों में नहीं, आत्मा में है।
6. विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि
यह श्लोक हमें समानता और विनम्रता का पाठ पढ़ाता है।
7. उद्धरेदात्मनात्मानं आत्मैव ह्यात्मनो बंधुः
अपने विचारों और कर्मों पर नियंत्रण से सफलता पाई जा सकती है।
8. दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः
जीवन में स्थिरता और समता बनाए रखने की शिक्षा।
9. असतो मा सद्गमय
सच्चाई के मार्ग पर चलने का संदेश।
10. मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा
यह श्लोक समर्पण और ईश्वर पर विश्वास का प्रतीक है।
11.सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखने की प्रेरणा।