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नंदा सप्तमी / Nanda Saptami 2021: नंदा देवी की पूजा का महत्व,शुभ समय व पूजा विधि

नंदा सप्तमी : नंदा देवी की पूजा का आज विशेष दिन

Dec 10, 2021 / 01:30 pm

दीपेश तिवारी

Nanda saptami 2021

Nanda saptami 2021

Nanda Saptami 2021: हर वर्ष हिंदू कैलेंडर के मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नंदा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यानि 2021 में शुक्रवार, 10 दिसंबर को नंदा सप्तमी पर्व (Nanda Saptami 2021) मनाया जा रहा है। इस दिन विशेष रूप से सूर्यदेव, भगवान श्री गणेश और देवी नंदा इन तीनों का पूजन किया जाता है।

ऐसे समझें कौन हैं नंदा देवी
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नंदा देवी माता पार्वती का स्वरूप मानी जाती है। नंदा देवी को नवदुर्गा में से एक देवी माना जाता है। इनका पूजन प्राचीन काल से ही हिमालय क्षेत्र में किया जाता रहा है। मान्यता के अनुसर नंदा सप्तमी के खास अवसर पर नंदा देवी का पूजन करके सुखी जीवन की कामना का वरदान प्राप्त किया जा सकता हैं।

नंदा देवी मां का एक मुख्य मंदिर देवीभूमि उत्तराखंड के अल्मोडा शहर में मौजूद है। सामान्यत: नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रुप में देखा जाता है, परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रुप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी।

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वहीं देवी के नाम पर ही देवभूमि उत्तराखण्ड में एक पर्वत भी मौजूद है। यह नंदा देवी नामक पर्वत चमोली जिले में 7,816 मीटर (25,463 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो उतराखण्ड की सबसे ऊंची व भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है।

नंदा सप्तमी पर्व: मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी तिथि 2021
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी तिथि की शुरुआत बृहस्पतिवार, 9 दिसंबर 2021 को शाम 07.53 मिनट से होगी और इस तिथि का समानन शुक्रवार, 10 दिसंबर को शाम 07.09 मिनट पर होगा।

उत्तराखंड की अधिष्ठात्री देवी!
उत्तराखंड के लोग नंदादेवी को अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं और यहां की लोककथाओं में इन्हें हिमालय की पुत्री कहा गया है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन माना जाता है, परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रुप में भी माना गया है। ऐसे में हर वर्ष उत्तराखंड की जनता द्वारा मां नंदा-सुनंदा की पूजा-अर्चना पूर्ण भक्ति भाव के साथ की जाती है।

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Nanda devi temple

वहीं हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष आयोजित होने वाला नंदादेवी मेला समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का एक जीता जागता प्रमाण है। माता नंदा देवी का स्थान बहुत ऊंचा है, वहीं नंदा देवी पर्वत विश्व की 23वीं सर्वोच्च चोटी है। इस चोटी को देवभूमि उत्तरांचल में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है।

देवीभूमि उत्तरांचल के कुमाऊं मंड़ल के अलावा भी नन्दादेवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में भी लोकप्रिय देवी हैं। यूं तो संपूर्ण उत्तराखंड में नंदा देवी को कुल इष्ट देवी मानता आया है। नन्दा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं।

नन्दा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। वहीं रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नन्दा भी एक है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नन्दा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शक्ति के रूप में नन्दा ही सारे हिमालय में पूजित हैं।

नंदा सप्तमी का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार नंदा सप्तमी पर व्रत-पूजन से मन को शांति मिलती है। यह व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला भी माना गया है। जानकारों के अनुसार इस बार शुक्रवार 10 दिसंबर 2021 को अभिजित और विजय मुहूर्त में नंदा सप्तमी का पूजन करना अतिशुभ रहेगा, क्योंकि ये दोनों ही मुहूर्त कार्यों के लिए शुभ माने जाते हैं।

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वहीं इस दिन राहुकाल के दौरान पूजन करने से बचना उचित माना जाता है। मार्गशीर्ष सप्तमी के सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करके सूर्य मंत्र और श्री गणेश के मंत्र का जाप भी करना चाहिए।
नंदा सप्तमी शुक्रवार 10 दिसंबर 2021: ये है पूजन का अतिशुभ समय-
: अभिजित मुहूर्त- दिन में 11.53 मिनट से दोपहर 12.35 मिनट रहेगा।
: विजय मुहूर्त दोपहर 01.58 मिनट से दोपहर 02.39 मिनट तक।
: राहुकाल- शुक्रवार के दिन में 10.56 मिनट से दोपहर 12.14 मिनट तक।
नंदा सप्तमी की पूजन विधि-
नंदा सप्तमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में दैनिक नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सूर्यदेव को जल से अर्घ्य देना चाहिए। जिसके बाद सूर्य मंत्र का जाप किया जाता है। इसके पश्चात प्रथम पूज्य श्री गणेश का पूजन करके देवी नंदा या माता पार्वती का पूजन करके आरती करनी चाहिए। इस दिन माता पार्वती के मंत्र, पार्वती चालीसा और नवदुर्गा का पूजन अति लाभकारी माना जाता है। ध्यान रहे कि श्री गणेश और माता पार्वती के साथ शिव जी का पूजन भी अवश्य करना चाहिए।
Nanda saptami puja

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