10 दिनों बाद जब वेदव्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो उनका शरीर तप रहा था। इसके बाद महर्षि वेदव्यास उन्हें एक कुंड के पास ले गए और यहां स्नान कराकर उनके तापमान को शांत किया। इसके बाद से गणेश स्थापना और गणपति विसर्जन की प्रथा शुरू हो गई। मान्यता है कि गणेश विसर्जन करने से गणपति महाराज को शीतलता प्राप्त होती है।
गणेश जी की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि, विवेक और समृद्धि का देवता माना गया है। ये बुद्धि व्यापार के कारक बुध ग्रह के भी स्वामी देवता हैं। ये देवताओं में प्रथम पूज्य भी हैं, बिना इनकी पूजा क कोई अनुष्ठान पूरा नहीं होता। इसलिए हर शुभ कार्य में इनकी पूजा सबसे पहले होती है।
ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से सभी अनुष्ठान विघ्न रहित पूरा हो जाता है। साथ ही भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन की सारी परेशानियां धीरे-धीरे दूर हो जाती है। गणपति की सच्चे दिल से पूजा करने वाले को शुभ फल मिलते हैं और बुध दोषों से भी राहत मिलती है। वास्तु दोष भी दूर होता है।
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गणेशोत्सव में कब-कब करते हैं गणेश विसर्जन
गणेश विसर्जन को लेकर अलग-अलग मान्यता है। कुछ लोग गणेश चतुर्थी के दिन ही पूजा के बाद शुभ मुहूर्त में विसर्जन कर देते हैं, लेकिन यह कम लोकप्रिय है।
कुछ लोग डेढ़ दिन बाद, यानी गणेश पूजा के अगले दिन पूजा के बाद मध्याह्न के अगले पहर पर विसर्जित करते हैं। वहीं कुछ लोग तीसरे दिन या फिर पांचवें दिन या फिर सातवें दिन विसर्जन करते हैं। हालांकि सबसे अधिक लोकप्रिय प्रथा अनंत चतुर्दशी को गणेश विसर्जन करना है।
गणेश विसर्जन का वैज्ञानिक आधार
क्या आपको गणेश विसर्जन का वैज्ञानिक आधार मालूम है। दरअसल, गणेश विसर्जन हमें याद दिलाता है कि संसार नश्वर है और एक दिन हर प्राणी को जल और जमीन में समाना है। इसके अलावा इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। विसर्जन के दौरान गणेश प्रतिमा के साथ हल्दी कुमकुम भी पानी में समाहित होता है। हल्दी एंटीबैक्टीरियल क्वालिटी रखती है, यह पानी को स्वच्छ करता है। इसके साथ ही दूर्वा, चंदन, धूप, फूल भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हैं। इसी कारण बारिश के मौसम में उफनते नदी, तालाब, पोखरे में जमा हुआ पानी शुद्ध होकर मछली, जोक जैसे अन्य दूसरे जीव जंतु को राहत देती है। इसी कारण गणेश प्रतिमा स्थापना के समय ऐसी मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए जो ईको फ्रेंडली हो और पानी में जल्दी घुल जाए। साथ ही मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा को चावल और फूलों के रंगों से ही रंगना चाहिए ताकि विसर्जन से पानी दूषित न हो।