घर-घर अख़बार भी बांटा
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण डॉ अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए घर-घर अख़बार बांटने का कार्य भी किया। 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश लिया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।
स्वदेशी तकनीक का प्रयोग
डॉ अब्दुल कलाम को परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय प्राप्त हुआ। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया और इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था।
साल 1980 में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने देश के अडवांस्ड मिसाइल प्रॉजेक्ट की शुरुआत उनके नेतृत्व में शुरू की। इस दौरान कलाम ने पृथ्वी और अग्नि मिसाइलों के विकास में अहम भूमिका अदा की। नब्बे दशक में भारत के पहले परमाणु परीक्षण ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ का भी मुख्य हिस्सा रहे। इसके बाद से ही उन्हें मिसाइस मैन के नाम से जाना जाने लगा।
देश का सर्वोच्च सम्मान
डॉ अब्दुल कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव भी रहे। उन्होंने रणनीतिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। भारत सरकार ने 1997 देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया और एक समय वह भी जब डॉ अब्दुल कलाम 25 जुलाई 2002 भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बने।
डॉ कलाम को उनके जीवन में श्रेष्ठ कार्यों के लिए अनेकों सम्मान जैसे-
1- भारत सरकार ने 1981 में पद्म भूषण
2- भारत सरकार ने 1990 पद्म विभूषण
3- इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स ने 1994 विशिष्ट शोधार्थी
4- भारत सरकार ने 1997 भारत रत्न
5- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1997 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
6- भारत सरकार ने 1998 में वीर सावरकर पुरस्कार
7- अल्वार्स शोध संस्थान, चेन्नई ने 2000 में रामानुजन पुरस्कार
8- हैंप्टन विश्वविद्यालय, यूनाईटेड किंगडम ने 2007 में डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि वूल्वर
9- मेडल रॉयल सोसायटी, यूनाइटेड किंगडम ने 2007 में किंग चार्ल्स
10- कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय ने 2007 में डॉक्टर ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नोलॉजी की मानद उपाधि
11- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने 2008 में डॉक्टर ऑफ साइन्स (मानद उपाधि)
12- नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय, सिंगापुर ने 2008 में डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग (मानद उपाधि)
13- कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने 2009 में वॉन कार्मन विंग्स अन्तर्राष्ट्रीय अवार्ड
14- ए॰एस॰एम॰ई॰ फाउण्डेशन ने 2009 में हूवर मेडल
15- ऑकलैंड विश्वविद्यालय ने 2009 में मानद डॉक्टरेट
16- यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाटरलू ने 2010 में डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग
17- आइ.ई.ई.ई. ने 2011 में आइ.ई.ई.ई. मानद सदस्यता
18- साइमन फ़्रेज़र विश्वविद्यालय ने 2012 डॉक्टर ऑफ़ लॉज़ (मानद उपाधि)
19- एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम ने 2014 डॉक्टर ऑफ़ साइन्स
करोड़ों बच्चों एवं युवाओं से मिले
एक बार कुछ नौजवानों ने डॉ कलाम से मिलने की इच्छा जाहिर की इसके लिए उन्होंने उनके ऑफिस में एक पत्र लिखा। कलाम ने राष्ट्रपति भवन के पर्सनल चैंबर में उन युवाओं से न सिर्फ मुलाकात की बल्कि काफी समय उनके साथ गुजार कर उनके आइडियाज भी सुनें। डॉ कलाम ने अपने जीवन में पूरे भारत में घूमकर लगभग करोड़ों बच्चों एवं युवाओं से मुलाकात की और वे जब भी उनसे मिलते थे उनके चेहरे पर प्रसन्नता स्पष्ट दिखाई देती रही है।
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