श्रावण मास के अलावा अन्य अवसरों पर पीतांबरा पीठ पर विराजमान वनखंडेश्वर महादेव सदैव भक्तों की आस्था का केंद्र रहते हैं। पीतांबरा पीठ पर आने वाले आम श्रद्धालु वनखंडेश्वर महादेव के दर्शन व पूजन-अर्चना जरूर करते हैं। पीतांबरा पीठ पर आने वाले श्रद्धालु मां बगुलामुखी और मां धूमावती के साथ वनखंडेश्वर महादेव के सामने भी नतमस्तक जरूर होते हैं। कहा जाता है कि रियासत काल में यह मंदिर वन खंड(जंगल) में होने की वजह से वनखंडेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध था। पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी ने यह स्थान एकांत में होने की वजह से इसे अपनी साधना स्थली के रूप में चुना। इस स्थान पर आने के बाद वह फिर कहीं नहीं गए। हालांकि वनखंडेश्वर के महाभारतकालीन होने का कहीं कोई लिखित प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है लेकिन किवदंतियों में यह अश्वत्थामा की तपस्थली माना जाता है।
क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकार रवि ठाकुर के अनुसार ऐसी धारणा है कि अश्वत्थामा सर्वव्यापी हैं। किसी ने उन्हें देखा तो किसी ने नहीं लेकिन माना जाता है कि जहां-जहां प्राचीन शिवलिंग हैं वहां अश्वत्थामा साधु, सन्यासी के वेष में अवश्य पहुंचते हैं। ठाकुर का कहना है कि ऐसी धारणा है कि अश्वत्थामा की भेंट पृथ्वीराज चौहान से हुई थी। पृथ्वीराज चौहान शिवभक्त थे और वहां जहां उनकी सेना जाती थी वहां पार्थिव शिवलिंग की स्थापना कराने के साथ पूजन करते थे। पृथ्वीराज चौहान के समय जहां-जहां महादेव मंदिरों की स्थापना हुई उन्हें वनखंडेश्वर महादेवों की मान्यता प्राप्त है।