श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव
उदयपुर से 49 किमी. दूर
राजसमंद के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भगवान कृष्ण के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। श्रीनाथजी की मूर्ति पहले मथुरा के निकट गोकुल में स्थित थी। वल्लभ गोस्वामीजी इसे राजपुताना (राजस्थान) ले गए। जिस स्थान पर मूर्ति की पुन: स्थापना हुई, उस स्थान को नाथद्वारा कहा जाने लगा। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं जिन्हें पुष्टिमार्ग या वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी श्रीकृष्ण भगवान के 7 वर्ष की अवस्था के रूप हैं।
मेवाड़ का वृंदावन कहलाता है श्रीसांवलिया सेठ मंदिर
चित्तौड़गढ़ से करीब 41 किलोमीटर दूर मण्डफिया में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के इस मंदिर में दर्शनों के लिए पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। इस मंदिर को मेवाड़ का वृंदावन धाम भी कहा जाता है। किंवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल हैं जिनकी वह पूजा किया करती थी। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ने वह रूप धारण किया था। लोग यहां जितना चढ़ाते हैं, उससे ज्यादा उन्हें वापस मिलता है। इसलिए व्यापारी लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।
द्वारकाधीश मंदिर वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ
राजसमंद के कांकरोली में द्वारकाधीश मंदिर पर्यटकों के मुख्य आकर्षणों में से एक है। यहां लाल पत्थर से बनी श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूरे भक्ति और समर्पण के साथ पूजी जाती है। कई लोगों का मानना है कि लाल पत्थर से बनी श्रीकृष्ण की यह मूर्ति मथुरा से लाई गई थी। महाराणा राज सिंह द्वारा 1676 में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर वैष्णव और वल्लभाचार्य संप्रदायों के अंतर्गत आता है। वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली में प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में है।
कृष्ण पथगमन बनाने का कॉन्सेप्ट ये है कि भगवान कृष्ण मथुरा से उज्जैन में शिक्षा के लिए जिस रास्ते पर गए, उस मार्ग में आने वाले कृष्ण धाम को सर्किट में जोड़ें। इस लिहाज से मेवाड़ का कोई स्थल नहीं है। राज्य सरकार की घोषणा के अनुसार काम होगा।- वासुदेव मालावत, आयुक्त, देवस्थान विभाग
कृष्ण भक्ति का सबसे बड़ा प्रचारक ही मेवाड़ रहा है। यहां के कृष्ण मंदिर प्राचीनता, ऐतिहासिकता के साथ पुरातात्विक व अभिलेखों की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं। नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर वैष्णव संप्रदाय की प्रधान पीठ है। कांकरोली में द्वारिकाधीश मंदिर वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ है। इसके अलावा गढ़बोर का चारभुजानाथ मंदिर देश के प्राचीनतम कृष्ण मंदिरों में से एक है तो सिरोही का सारणेश्वर धाम भी प्रसिद्ध है। माध्यमिका, चित्तौड़ में श्रीकृष्ण-बलदेव से संबंधित ब्राह्मी लिपि में शिलालेख मिला जो दूसरी सदी ईसा पूर्व का है।- डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, इतिहासकार