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छिंदवाड़ा

ठिठुरती सर्द रातों में बेसहारा छोड़ा, नन्ही जान के साथ अन्याय

झाडिय़ों के बीच लावारिस हालत में मिली मासूम

छिंदवाड़ाNov 26, 2024 / 06:48 pm

mantosh singh

मंतोष कुमार सिंह
पांढुर्ना जिले के सौंसर की घटना ने मानवता को ऐसी गहरी चोट पहुंचाई है, जिसकी गूंज लंबे समय तक सुनाई देगी। झाडिय़ों के बीच लावारिस हालत में पड़ी दो माह की मासूम बच्ची उस समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, जो प्रगति का दम तो भरता है, परंतु अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। ठिठुरती सर्द रातों में नन्ही जान को बेसहारा छोडऩे वाले ने क्या यह नहीं सोचा होगा कि ऐसी परिस्थितियों में बच्ची कैसे जीवित रह पाएगी? यह सोचकर भी आत्मा सिहर उठती है कि आखिर वह कौन-सी विवशता रही होगी जिसने एक मां को अपनी कोख से जन्मी कली को इस कू्ररता के साथ छोडऩे पर मजबूर कर दिया।
सुबह की सैर पर निकले कुछ संवेदनशील नागरिकों ने उस बच्ची को देखा और तुरंत अस्पताल पहुंचाया। सवाल यह है कि समाज के प्रति यह किस तरह की अमानवीयता का प्रतीक है? क्या उस मां की मजबूरी इतनी बड़ी थी कि उसने अपनी मासूम को प्रकृति के कू्रर हाथों में सौंप दिया? या यह समाज की विफलता है, जिसने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया? हर नवजात ईश्वर का वरदान होता है। फिर क्यों समाज उसे बोझ समझता है? क्यों हमें आज भी ऐसी अमानवीय घटनाओं का सामना करना पड़ता है? यह घटना केवल एक बच्ची का त्याग नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक, नैतिक और संवेदनात्मक विफलताओं का दर्पण है। अगर हमारा समाज थोड़ा संवेदनशील होता, तो क्या उस मां को सहायता नहीं मिल सकती थी? क्या हम एक ऐसा वातावरण नहीं बना सकते थे, जहां कोई मां इस तरह का कठोर निर्णय लेने के लिए मजबूर न हो?
यह घटना हमारी सामाजिक व्यवस्था पर गहरे प्रश्नचिह्न खड़े करती है। क्या हमारा समाज इतना संवेदनहीन हो गया है कि बच्चियों के लिए कोई जगह नहीं बची? क्या हमारा नैतिक कर्तव्य सीमित रह गए हैं? मासूम बच्ची की मर्मस्पर्शी कहानी हर दिल को झकझोरती है। क्या वह बच्ची सुरक्षित रहेगी? क्या उसे समाज अपनाएगा? क्या वह एक सामान्य जीवन जी सकेगी? यह हर उस व्यक्ति के लिए एक चुनौती है, जो अपने आप को मानवता का समर्थक मानता है। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि समाज के नाम एक संदेश है। हर बच्ची को जीने का अधिकार है। हर बच्ची की किलकारियां किसी घर की खुशी बन सकती हैं। इस घटना को एक सबक के रूप में लेते हुए हमें ऐसे तंत्र विकसित करने होंगे, जो हर मां को मजबूरी में भी साहस दे और हर बच्ची को एक सुरक्षित भविष्य। समाज को जागना होगा। संवेदनाएं मरने से पहले पुनर्जीवित करनी होंगी। इंसानियत को बचाना होगा।

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