ये है मामला
रायपुर निवासी अपीलकर्ता गुलाम मोहम्मद ने बैजनाथ पारा स्थित अपनी तीन दुकान बेचने कटोरा तालाब निवासी युसूफ से 28 लाख में सौदा किया था। सौदे में 10 लाख रुपए पहले देने एवं शेष रकम 6-6 लाख की तीन किस्त में भुगतान करने दोनों के मध्य समझौता हुआ था। पंजीकृत बिक्री होने के बाद 6 अगस्त 2005 को दस लाख का भुगतान किया गया। शेष राशि तीन बराबर किस्तों में भुगतान करने का वादा किया।
खरीदार ने पहली किस्त के रूप में केवल छह लाख रुपये का चेक जारी किया और शेष राशि बारह लाख रुपये दो किस्तों में भुगतान करने का वादा किया। 21 सितंबर 2005 को, अपीलकर्ता ने उपरोक्त चेक जमा किया जो ’’भुगतान रोक’’ के कारण अस्वीकृत हो गया। 24 नवंबर 2005 को, अपीलकर्ता विक्रेता ने खरीदार का आश्वासन मिलने पर फिर से चेक प्रस्तुत किया और यह फिर अस्वीकृत हुआ।
2009 में बरी हुआ चेक जारी करने वाला
जिसके बाद मामला निचली अदालत में पहुंचा। जहां से मजिस्ट्रेट ने 24 दिसंबर 2009 को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर प्रतिवादी को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अपराध से बरी कर दिया। इसके खिलाफ
हाईकोर्ट में अपील की गई।