सागर जिले की बीना से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनी निर्मला सप्रे ने लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर सीएम मोहन यादव के समक्ष बीजेपी की सदस्यता ली थी। वे 5 मई को अपनी जिन 13 मांगों को लेकर बीजेपी में शामिल हुई थीं उनमें से बीना को जिला बनाने की मांग सर्वप्रमुख थी। यह मामला खटाई में पड़ जाने के बाद उन्होंने अभी तक विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है।
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विधायक निर्मला सप्रे ने विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता था लेकिन अभी तक औपचारिक रूप से बीजेपी ज्वाइन नहीं की है, न ही विधायकी से इस्तीफा दिया है। हालांकि वे इस दौरान कई बार बीजेपी के कार्यक्रमों में शामिल हुईं।
कांग्रेस उनकी सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर से आवेदन कर चुकी है। इसके जवाब में सप्रे ने कहा है कि वे बीजेपी में शामिल नहीं हुई हैं। इस मामले में कांग्रेस हाईकोर्ट जाने की तैयारी में लगी है।
विधायक निर्मला सप्रे ने पिछले माह बीजेपी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक बैठक में हिस्सा लिया था। तब सप्रे ने मीडिया से कहा था कि जल्द ही अच्छी खबर आने वाली है। वे खुद को जनता का विधायक बताकर आमजन की राय से फैसला लेने की बात भी कहती रहीं हैं।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने वाले रामनिवास रावत की बुरी हार से विधायक निर्मला सप्रे का विचलित होना तय है। कहा जा रहा है कि रावत को विजयपुर के लोगों ने पार्टी से गद्दारी करने की सजा दी है। निर्मला सप्रे भी दोबारा चुनाव लड़ने पर जीत के प्रति आश्वस्त नजर नहीं आती। यही वजह है कि वे अब येन केन प्रकारेण अपना कार्यकाल यूं ही पूरा करने की रणनीति पर ही अमल कर रहीं हैं। निर्मला सप्रे का बीजेपी में शामिल होकर चुनाव का सामना करने का साहस जुटा पाने में अब संदेह है।
विधानसभा के दो पूर्व विधायकों- दिनेश अहिरवार और सचिन बिरला के उदाहरण उनमें सामने हैं। जतारा के विधायक रहे दिनेश अहिरवार और बड़वाह से विधायक रहे सचिन बिरला ने कांग्रेस से किनारा करने के बाद भी अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। अपने पूर्ववर्ती विधायकों की तरह बीना विधायक निर्मला सप्रे भी अपना यह कार्यकाल किसी तरह पूरा करने की कोशिश में जुटी हैं।