गोविन्द सक्सेना @ विदिशा। भगवान विष्णु के दस अवतारों का पुराणों में उल्लेख है। इन दस अवतारों के एक साथ दर्शन करना हो तो 9 वीं 10 वीं शताब्दी के अनूठे स्मारकों का जिक्र जरूर आता है। ये स्मारक हैं विदिशा से मात्र 38 किमी दूर ग्यारसपुर में। हिण्डोला तोरण द्वार के नाम से विख्यात इस पुरास्मारक में भगवान विष्णु के किसी प्राचीन और भव्य मंदिर का अब तोरणद्वार ही शेष है। इसी तोरणद्वार पर भव्य पाषाण शिल्प के बीच दर्शन देते हैं भगवान विष्णु के दस अवतार।
देखें…9-10वीं शताब्दी का ये अनोखा मंदिर
चार स्तंभों का मंडप
ग्यारसपुर में विख्यात मालादेवी मंदिर के मार्ग पर हिंडोला तोरण द्वार एवं मंडप पर्यटकों को अचानक ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन यह स्मारक अतीत के किसी अत्यंत भव्य और विशाल विष्णु मंदिर के अवशेषों की गवाही देता है। मंदिर की सीढिय़ों पर शंख का उत्कीर्ण होना भी इसका प्रमाण है। यह स्मारक नवीं-दसवीं शताब्दी का है। मंदिर के नाम पर अब यहां सिर्फ जीर्ण-शीर्ण खंडहर और चार स्तंभों का मंडप ही दिखाई देता है, जिनमें आकर्षक कलाकृतियां उत्कीर्ण हैं। संभवत: हिण्डोला तोरणद्वार इसी भव्य मंदिर का प्रवेश द्वार रहा होगा।
भगवान विष्णु के पांच अवतार
ग्यारसपुर का यह हिण्डोला तोरणद्वार भगवान विष्णु के दशावतारों का गुणगान करता प्रतीत होता है। पाषाण शिल्प के इस नायाब नमूने पर यक्ष-यक्षिणियों, देवी-देवताओं के साथ ही तोरणद्वार के दोनों स्तंभों पर विष्णु के 5-5 अवतारों का अंकन है। ये अवतार चारों दिशाओं में दिखाई देते हैं। एक स्तंभ की एक दिशा में मत्स्य और कच्छप अवतार को संयुक्त रूप से दर्शाया गया है तो दूसरी दिशा में वामन अवतार, तीसरी में वराह और चौथी में नरसिंह अवतार उत्कीर्ण है। इसी तरह दूसरे स्तंभ पर परशुराम, राम, कृष्ण अंकित हैं। चौथी दिशा में भगवान बुद्ध और कल्कि अवतार संयुक्त रूप से उत्कीर्ण हैं।
पत्थरों पर खूबसूरत कारीगरी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इस स्मारक को देख परमारकाल के आसपास के मंदिरों के महत्व और उस समय की स्थापत्य कला की चरमता का पता चलता है। एक-एक सिरे और पत्थर पर उत्कीर्ण शिल्प को देखें तो हर पत्थर कुछ बोलता सा प्रतीत होता है। अवशेष भी सदियों पहले रही यहां की भव्यता की गाथा सुनाते हैं।