मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी योजना ने बाल विवाह की रोकथाम में अहम भूमिका निभाई है। इससे प्रदेश में कम उम्र में विवाह में खासी कमी आई। करीब 9 साल पहले तक जहां प्रदेश की हर तीसरी लड़की की शादी 18 साल से कम आयु में हो रही थी वहीं अब यह दर काफी गिर गई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार प्रदेश में सन 2019-21 में 18 साल से पहले शादी की दर 23.1 प्रतिशत थी। एनएफएचएस-4 में सन 2015-16 के दौरान यह दर 32.4 प्रतिशत पाई गई थी। बाल विवाह में इस कमी का श्रेय जागरूकता कार्यक्रमों के साथ ही मुख्य रूप से लाड़ली लक्ष्मी योजना को दिया जा रहा है।
यह भी पढ़ें: एमपी में चौड़ी होगी तीन जिलों को जोड़नेवाली सड़क, 4 लेन को मिली मंजूरी राज्य सरकार ने 1 अप्रैल 2007 को युवतियों को लाभ पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरु की। योजना के तहत राज्य सरकार ने कन्या संतान को 1 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी। 1 जनवरी 2006 या इसके बाद जन्मी बालिका को इस योजना का लाभ दिया जाता है।
सरकार ने कहा कि 21 साल की आयु के बाद बालिका के खाते में 1 लाख रुपए डाले जाएंगे। खास बात यह है कि योजना के तहत 18 साल की उम्र तक बेटी का विवाह नहीं किए जाने की शर्त रखी गई। यह भी कहा गया कि यदि बेटी स्कूल छोड़ देगी, तो योजना लाभ नहीं मिलेगा।
योजनांतर्गत बेटी के नाम से मध्यप्रदेश सरकार की ओर से 1,43,000/- का आश्वासन प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
योजना में पंजीकृत बालिका को 6 वीं क्लास में प्रवेश पर 2000 रुपए, 9 वीं क्लास में प्रवेश पर 4000 रुपए, 11 वीं क्लास में प्रवेश पर 6000 रुपए और 12वीं क्लास में प्रवेश पर 6000 रुपए देने का प्रावधान है।
यह भी पढ़ें: एमपी में लाखों कर्मचारियों को हर माह 1500 से 2500 तक का नुकसान, अफसरों के खिलाफ लामबंद हुए संगठन बालिकाओं को 12वीं क्लास के बाद स्नातक अथवा व्यवसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने पर 25000 रुपए की प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। बालिका की आयु 21 वर्ष पूर्ण होने पर 1.00 लाख रुपए का अंतिम भुगतान किए जाने का प्रावधान है।
लाड़ली लक्ष्मी योजना के कारण बालिकाओं का स्कूल में अधिक समय तक रहना संभव हुआ है। इतना ही नहीं, बाल विवाह भी रुक गए, अधिकांश शादियां अब 18 साल के बाद ही हो रहीं हैं। देर से शादी होने के कारण माध्यमिक शिक्षा में नामांकन में वृद्धि हुई है। विवाह और मातृत्व में देरी से किशोर गर्भावस्था के जोखिमों में भी कमी आ गई है। इससे प्रदेश में मातृ और शिशु स्वास्थ्य में भी सुधार हो गया है।