ध्यानचंद— विवेक ने वाकई कमाल किया है। वे मिडफील्डर हैं, लेफ्ट—ऑफ की पोजीशन पर खेलते हैं। हाफलाइन से डी तक पहुंच जाना और राइट साइड से हुए अटैक से लौटी गेंद को गोल में पहुंचा देना—यह सबकुछ गजब का काम है। उन्होंने बेहद सटीक अनुमान लगाकर मौके पर खूबसूरत गोल किया।
ध्यानचंद— अकोला में हुए एक टूर्नामेंट में पहली बार जब विवेक को खेलता देखा तभी लग गया था कि वे बहुत आगे जा सकते हैं। उस समय वे महज 13—14 साल के थे पर उनके दौड़ने का ढंग बहुत अच्छा था, पैरों में गजब का तालमेल दिखा। सभी खिलाड़ियों के बीच वे छलांग मारते हुए अलग ही दिख रहे थे, चोट लगने का कोई डर नहीं दिख रहा था।
ध्यानचंद— मुझे लगा कि इस बच्चे के हुनर को तराशना जरूरी है। खेल समाप्ति के बाद मैं खुद उनसे जाकर मिला और शाबासी दी। उन्हें भोपाल ले आया और कुछ माह तक अपने घर में ही रखा। उनमें हाकी के प्रति जबर्दस्त समर्पण दिखाई दिया था। बचपन से ही देश के लिए खेलने और कुछ कर गुजरने—जीतने का जज्बा भी था।
ध्यानचंद— मेरे सामने की ही बात है जब वे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी से टकरा गए थे। उनके हाथ की हड्डी टूटकर बाहर आ गई थी। उससे भी बुरी बात यह हुई कि खराब खून उनके फेफड़ों तक पहुंच जाने से उनकी जान पर बन आई थी। उस भयावह दुर्घटना से भी वे जल्द ही उबर गए और एक हाथ से ही प्रेक्टिस प्रारंभ कर दी थी।
ध्यानचंद— मिडफील्डर की भूमिका के लिए विवेक पूरी तरह फिट हैं। भारतीय टीम की मजबूती में उनका खासा योगदान दिखाई दे रहा है। जूनियर टीम में वे कप्तान भी रह चुके हैं, सो टीमवर्क का महत्व बखूबी जानते हैं। विवेक सागर के साथ भारतीय टीम का भविष्य बहुत उज्जवल दिखाई दे रहा है।
ध्यानचंद—इस बार हम पक्के तौर पर मेडल ला रहे हैं। जापान के साथ हमारा मैच महज रस्मी ही होगा हालांकि हमें हर मैच गंभीरता से लेना होगा। ओलिंपिक में अभी तक भारतीय टीम ने जो प्रदर्शन किया है उससे लगने लगा है कि हम दोबारा हाकी के सिरमौर बनने की राह पर हैं। गुड लक टू टीम इंडिया।