जानकारी के मुताबिक झांसी का रहने वाला 34 साल का नीरज विश्वकर्मा करीब दो महीने पहले दुर्घटना में घायल हो गया था। नीरज के सिर में तेज चोट लगी, जिससे वहां खून का थक्का जम गया और दिमाग का आकार बड़ा हो गया था। नीरज को तत्काल झांसी के अस्पताल में एडमिट किया गया जहां उसके दिमाग (खोपड़ी) को काटकर हड्डी को पेट में सुरक्षित रख दिया था। दिमाग में खून का थक्का बढऩे से नीरज के शरीर में लकवा हो गया और वह अर्धकोमा में चला गया। तभी से उसकी स्थिति बिगड़ी हुई थी।
खून का थक्का जमा था
हमीदिया अस्पताल में ऑपरेशन को अंजाम देने वाले न्यूरोसर्जन डॉ. आईडी चौरसिया ने बताया कि जब नीरज उनके पास आया तो उसकी स्थिति बहुत खराब थी। दिमाग में जहां खून का थक्का जमा था वहां का हिस्सा पूरी तरह से मृत (डेड) हो चुका था। हमने जांच कर मरीज के डेड ब्रेन को हिस्से को काटा, लूड निकाला और पेट में रखी हड्डियों को वापस सही जगह लगा दिया। उन्होंने बताया कि इस सर्जरी को क्रमियोप्लास्टी कहा जाता है।
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जान जाने का भी था खतरा
डॉ. चौरसिया के मुताबिक इस तरह के ऑपरेशन बहुत जटिल होते हैं। दिमाग का कोई भी हिस्सा काटना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। थोड़ी सी गड़बड़ी से मरीज की जान जा सकती है। दूसरी ओर मरीज पूरी तरह होश में नहीं था, ऑपरेशन में होने वाली गड़बड़ी से मरीज के शरीर में असर पता नहीं चलते। अतिरिक्त सावधानी के साथ ऑपरेशन किया। अब मरीज की स्थिति ठीक है, अभी उसे डॉक्टरी टीम की निगरानी में रखा गया है। उम्मीद है कि 10 दिन बाद मरीज को डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।