दिग्गज नेताओं की भी होगी नियुक्ति…
दरअसल, विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले अरुण यादव को हटाकर कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था, जिसके बाद से वे नाराज बताए जा रहे थे। अरुण के साथ अन्य दिग्गज नेताओं की भी निगम-मंडल में नियुक्ति की जा सकती है। इसके लिए शीर्ष नेतृत्व में चर्चा चल रही है। ये सब लोकसभा चुनाव के पहले तय हो जाएगा।
पिता के नक्शे कदम पर पुत्र…
अरुण की नियुक्ति के पीछे कुछ और कारण भी हैं। अरुण के पिता सुभाष यादव प्रदेश के बड़े सहकारिता नेता माने जाते रहे हैं। गांव-गांव तक फैले इस नेटवर्क का इस्तेमाल कांग्रेस के लिए किया जाता रहा है। अब चूंकि लोकसभा चुनाव आने वाले हैं, ऐसे में पिता के रास्ते पर पुत्र को चलाने की तैयारी है।
किसानों से जुड़ा ये महकमा सरकार की कर्जमाफी जैसी योजनाओं को गांवों तक पहुंचाकर उनको फिर से कांग्रेस के पाले में लाने की कवायद की जाएगी। इसके लिए नए सिरे से नेटवर्क तैयार किया जाएगा।
15 साल के शासन के दौरान सहकारिता पर कब्जा जमा चुके नेताओं को चुन-चुनकर बाहर किया जाएगा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ा जाएगा। पिता के प्रभाव के चलते अरुण को इस काम में माहिर माना जा रहा है।
कांग्रेस मानती है कि अरुण की ताजपोशी के बाद एक ही गुट के सहकारिता मंत्री और कृषि मंत्री हो जाएंगे, जिससे आपसी टकराव की नौबत नहीं आएगी। अरुण यादव का सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह से अ’छा तालमेल माना जाता है। वहीं, कृषि विभाग भाई सचिन यादव के पास है। ये तीनों मिलकर ही लोकसभा चुनाव में किसानों को कांग्रेस के समर्थन में खड़ा करेंगे।
सरकार का फोकस सहकारिता घोटालों पर भी है। होशंगाबाद, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर और समेत आधा दर्जन जिला सहकारी बैंकों में आर्थिक अनियमितताएं हुई हैं। इन सभी घोटालों की जांच कराई जाएगी। कांग्रेस मानती है कि भाजपा ने 15 सालों में सहकारिता का इस्तेमाल पैसा कमाने के लिए किया है। इससे एक दर्जन सहकारी बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गए।
अरुण यादव, पूर्व अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस