बैंकों की भी बढ़ी चिन्ता जीएसटी लागू होने के बाद जुलाई माह में उद्यमियों ने जैसे-तैसे किश्त व ब्याज तो जमा करा दिए, लेकिन अब अगस्त, सितम्बर व अक्टूबर माह की किश्त समय पर जमा नहीं होने या ब्याज जमा नहीं होने पर बैंक का खाता एनपीए होने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में बैंक प्रबन्धकों की चिन्ताएं बढ़ गई है कि अक्टूबर माह में किश्त व ब्याज जमा नहीं कराए तो क्या होगा। कई बैंक के अधिकारी तो उद्यमियों को व्यक्तिगत रूप से फोन करके भी राशि जमा कराने के लिए आग्रह कर रहे है।
कम्पोजिट व नॉन कम्पोजिट मिलों में अन्तर कपड़ा उद्यमियों का विरोध जीएसटी के प्रति नहीं है। वे केन्द्रीय वित्त मंत्री से मुख्य रूप से कम्पोजिट व नॉन कम्पोजिट मिलों की बीच आ रहे कपड़े की दर व जीएसटी दर को एक समान करने की मांग कर रहे है। इस विसंगति के चलते छोटे उद्यमियों का कपड़ा 7 रुपए महंगा तो कम्पोजिट मिलों का कपड़ा 7 रुपए मीटर सस्ता पड़ रहा है। इसके चलते कपड़े के खरीददार असंमजस की स्थिति में है कि वे कपड़ा किससे खरीदे।
जीएसटी लागू होने के बाद उद्योगों को चलाना मुश्किल हो गया है। काम नहीं मिलने से श्रमिकों ने पलायन करना शुरू कर दिया है। वीविंग के दम पर चलने वाले प्रोसेस को भी काम नहीं मिल रहा है। कपड़े का उत्पादन 50 प्रतिशत कम हो गया है। छह अक्टूबर को जीएसटी कांउसिंल में कोई निर्णय नही होता है तो उद्योगों की हालात बहुंत ज्यादा खराब हो जाएगी। यार्न ट्रेडर्स व जॉब पर कपड़ा बनाने वाले व्यापारी भीलवाड़ा छोडकर जाने लगे है। बैंक में किश्त व ब्याज जमा नहीं हो रहा है।
लघु व मध्यम उद्योगों को खतरा
जीएसटी का कोई भी व्यापारी विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन विसंगतियों के चलते हालात ठीक नहीं है। लघु व मध्यम उद्योग मृत प्राय हो गए है। 50 प्रतिशत का उत्पादन कम हो गया। कपड़े की मांग नहीं है। जनवरी तक कोई आसार नहीं लग रहे है। हर संगठन विसंगतियों को दूर करने की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार अड़ी रही तो छोटे उद्योग बन्द हो जाएंगे। टेक्सटाइल संगठन कई बार प्रतिवेदन दे चुके है। लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी है। वह केवल कारर्पोट उद्योगों को फायदा पहुंचाना चाहती है। इसके चलते ही छोटे उद्योगों के मुकाबले कम्पोजिट मिलों का कपड़ा 7 रुपए मीटर सस्ता मिल रहा है। व्यापारी छोटे उद्यमियों से कपड़ा नहीं खरीद रहा है।
त्योहारी सीजन पर भी आराम कर रहे व्यापारी नवरात्र के साथ ही त्यौहारी सीजन शुरू हो गया है, लेकिन कपड़े की मांग कही से भी नहीं है। व्यापारी तीन स्थानों पर कपड़े के कीमत पूछ रहा है, उसे तीनों स्थानों पर काफी अन्तर मिल रहा है। कम्पोजिट मिलों का कपड़ा सबसे सस्ता पड़ रहा है। वर्षो से एक ही उद्यमी से व्यापार कर रहे कपड़ा व्यापारी भी असमंजस की स्थिति में है। ऐसे में वे जो हर साल सौ कपड़े की गांठ बुक कराते थे, वह अब दस गांठ भी बुक नहीं करवा रहे है।
अतुल शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष भीलवाड़ा टेक्सटाइल ट्रेड फेडरेशन
जीएसटी के कारण उद्योगों को जाब नहीं मिल रहा है। इसके चलते लूमें पूरी तरह से काम नहीं कर रही है। 52 से आज केवल 40 लूम चला रहे हैं। 25 से 30 हजार श्रमिकों की छुट्टी कर दी गई है। कई तो गांव चले गए कई इधर उधर भटक रहे हैं। यही हालात रहे तो छोटे—छोटे उद्योगों के ताले लग जाएंगे।
प्रीतमकुमार, श्रमिक ठेकेदार