इस पूर्व पुलिस कमिश्नर ने किया करिश्मा, पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे के बाद अब पोते को भी दी मात
बागपत लोकसभा सीट पर रालाेद अपना वजूद भी नहीं बचा पाई है
जाट बाहुल्य क्षेत्र व अपना घर होने के बावजूद जयंत को हार नसीब हुई
2012 से 2014 तक मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे हैं डॉ. सत्यपाल सिंह
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बागपत। लोकसभा चुनाव 2019 में कई अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिले हैं। इन्हीं में से एक बागपत लोकसभा सीट का भी है। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर आज पार्टी अपना वजूद भी नहीं बचा पाई है। यहां से भाजपा सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी का मात दी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में डॉ. सत्यपाल सिंह जयंत चौधरी के पिता को भी मात दे चुके हैं।
खुद अजित सिंह भी हार गए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के दबदबे वाली बागपत लोकसभा सीट पर रालाेद आज अपना वजूद भी नहीं बचा पाई है। इस लोकसभा चुनाव में अजित सिंह की पार्टी का एक भी उम्मीदवार नहीं जीता है। खुद अजित सिंह मुजफ्फरनगर से चुनाव हार गए। सपा, बसपा और कांग्रेस का साथ मिलने के बावजूद छोटे चौधरी जीत हासिल नहीं कर पाए। कुछ ऐसा ही हाल उनके पुत्र जयंत चौधरी का हुआ। जाट बाहुल्य क्षेत्र व अपना घर होने के बावजूद जयंत को हार नसीब हुई। वह भी तब जब कांग्रेस, बसपा और सपा उनके साथ थे।
छह बार सांसद रहे हैं अजित सिंह बागपत सीट इमरजेंसी के बाद से चौधरी चरण सिंह या उनके परिवार पास रही है। 1977, 1980 और 1984 में यहां से बड़े चौधरी ने जीत हरासिल की। इसके बाद कमान उनके बेटे अजित सिंह ने संभाल ली। 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में छोटे चौधरी सांसद चुने गए। लेकिन उनके दल बदलने की आदत से जनता परेशान हो गई। क्षेत्र का विकास भी नहीं हुआ। इसके अलावा अजित सिंह ज्यादातर समय अपना दिल्ली में बिताते थे।
2014 में बदली तस्वीर 2014 में यहां मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर पहुंच गए। डॉ. सत्यपाल सिंह बागपत के बासौली गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने बड़ौत के दिगगंबर जैन कॉलेज से एमएससी की थी। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमफिल करने के बाद नागपुर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। 1980 बैच के महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस डॉ. सत्यपाल सिंह 2012 से 2014 तक मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे। इसके बाद उन्होंने भाजपा का कमल पकड़कर घर की राह पकड़ी। यहां उन्होंने मोदी लहर में अजित सिंह को करारी शिकस्त दी।
मायावती की इस बड़ी चाल को नहीं समझ सके अखिलेश, इसलिए फिर सिमटे 5 सीटों पर तीसरे स्थान पर आए थे अजित 2014 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह के नाम पर जीतते रहे अजित सिंह तीसरे स्थान पर खिसक गए। जाट बाहुल्य क्षेत्र में उन्हें केवल 19.9 फीसदी वोट ही मिले थे जबकि सत्यपाल सिंह 42.2 फीसदी के साथ जाटों के नए नेता के रूप में खड़े हुए।
अखिलेश यादव ने लिया बड़ा फैसला, अब जारी किया ये लेटर जीत पक्की करने के लिए अपनाई थी यह रणनीति इस हार के बाद चौधरी अजित सिंह ने करीब दो साल पहले से ही 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने युवाओं को लुभाने के लिए जयंत चौधरी को आगे किया और खुद मुजफ्फरनगर के गांवों में घूमने लगे। लोकसभा चुनाव में अपनी जीत पक्की करने के लिए अजित सिंह ने कांग्रेस को भी मना लिया। वहीं, जयंत चौधरी गठबंधन का हिस्सा बनने में कामयाब रहे। इसके बाद माना जा रहा था कि जयंत चौधरी रालोद का अस्तित्व बचाने में कामयाब रहेंगे। इसकी वजह यहां के समीकरण को माना गया। यहां 4 लाख जाट और 3.50 लाख मुस्लिम हैं। इसके अलावा करीब 1.50 लाख दलित हैं। लेकिन परिणाम बिल्कुल विपरीत आए। पूर्व आईपीएस डॉ. सत्यपाल सिंह ने अजित सिंह के बेटे को भी हरा दिया। इसके पीछे उनके द्वारा कराए गए विकास को भी वजह माना जा रहा है। इसके अलावा जाट वोट भी अब पूरी तरह से चौधरी चरण सिंह परिवार के साथ नहीं रहा है।
यह कहा सत्यपाल सिंह ने इस जीत के बाद सत्यपाल सिंह का शुक्रवार को बड़ौत में पार्टी कार्यालय पर जोरदार स्वागत किया गया। इस दौरान उन्होंने कहा, कुछ अपने लोग पराये हो जाते हैं। ये तो भगवान तय करेगा, समाज तय करेगा, कौन अपने हैं और कौन पराये। केंद्र से मोदी जी और यूपी में योगी जी का आशीर्वाद मिला है। मैं बागपत का भविष्य बदलने के लिए आया हूं।
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