यह गांव
बागपत जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव में करीब 14,000 लोग रहते हैं। करीब 250 साल पहले यहां हवेलियां बनाने का काम शुरू हुआ और इस तरह से गांव में 50 से ज्यादा हवेलियां बनवाई गईं। इस कारण यह गांव हवेलियों वाला गांव के नाम से भी जाना जाता है।
गांन में मौजूद हैं 30 हवेलियां
जैसे जैसे साल खत्म हुए लोग अपनी हवेलियों को बेच कर शहर में रहने चले गए, लेकिन आज भी गांव में करीब 30 परिवार ऐसे हैं, जो हवेलियों में रहते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गांव वालों ने बताया कि पूर्वजों ने हवेलियों को बनाने के लिए गांव में भट्ठियां बनवाई थीं। उस समय गांव में रघुवीर सिंह, चंदन सिंह, गिरवर सिंह, रामप्रसाद सिंह, तोताराम, तुलसी राम, हरज्ञान सिंह, बालमुकंद बनिया, रामनारायण सिंह, भोपाल सिंह, राधेश्याम, ज्योति स्वरूप ने सबसे पहले हवेलियों का निर्माण कराया था। इनके बाद गांव के अन्य लोगों ने हवेलियों का निर्माण शुरू कराया। गांव में मौजूद हैं 11 ऐतिहासिक मंदिर
बामनौली नाम के इस गांव में 11 ऐतिहासिक मंदिर हैं। गांव के नागेश्वर मंदिर, बाबा सुरजन दास मंदिर, ठाकुर द्वारा मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, बाबा काली सिंह मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर, श्वेताम्बर स्थानक, शिव मंदिर, गुरु रविदास मंदिर, वाल्मीकि मंदिर दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। इन मंदिरों में आज भी कई श्रद्धालु दूर-दूर से पूजा करने आते हैं।
सरनेम की मिस्ट्री
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गांव वालों ने बताया कि लोगों के उपनाम पशुओं व जानवरों के नाम पर रखने का रिवाज काफी पुरानी है। इस रिवाज की वजह से गांव में कई लोगों के नाम के पीछे तोता, चिड़िया, गिलहरी, बकरी, बंदर आदि लगे हैं। इतना ही नहीं, अगर गांव में किसी के नाम कोई चिट्ठी आती है तो यही उपनाम लिखे जाते हैं।